"अनोखा संस्मरण"
लगभग
25 साल पुरानी बात है! उन
दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर पर था। दोनों बच्चे अलग कमरे में सोते थे। हमारे
बेडरूम से 10 कदम की दूरी पर बाहर बराम्दे में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका
के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर सो गया। लेकिन दिसम्बर का
महीना होने के कारण मुझे कुछ ठण्ड का आभास होने लगा। मैंने महसूस किया कि मेरे
कपड़े कुछ गीले थे। मन में सोच विचार करता रहा कि मेरे कपड़े कैसे गीले हुए
होंगे। तभी याद आया कि मैं कुछ देर पहले लघुशंका के लिए गया था। मन में घटना की
पुनरावृत्ति होने लगी तो याद आया कि मैं शौचालय में गिरा पड़ा था और तन्द्रा में
होने के कारण पुनः बिस्तर पर आकर लेट गया था।
फिर
तो पूरी घटना याद आ गयी कि मुझे वहाँ चक्कर आया था और न जाने कितनी देर मैं
मूर्छा में रहा। मैंने मूर्छा में जो दिव्य दृश्य देखा उसे आज पाठकों के साथ
साझा कर रहा हूँ।
“मैं एक अनोखे और
आनन्दमय संसार में पहुँच गया था। जहाँ पर मैंने विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन
किये। यमराज से मेरा सीधा सम्वाद भी हुआ। जहाँ पर वो अपने गणनाकार से कह रहे थे
कि इसे तो अभी बहुत जीना है। इसकी उम्र तो अभी पचास साल और है। तुम इसे यहाँ
क्यों ले आये हो।“
इसके बाद मैं होश में आकर अपने बिस्तर पर आकर लेट गया था।
मैंने श्रीमती जी को जगाया और पूरी घटना उन्हें बताई तो
उनकी नींद तो काफूर हो गयी थी। उन्होंने मेरे कपड़े बदले, बिस्तर बदला और बहुत
सी बातें करते रहे। लेकिन इस घटना में खास बात यह रही कि शौचालय में गिरने के
बाद भी मेरे किसी अंग में न तो कोई खरौच थी और न ही कोई पीड़ा थी।
अब सवेरा हो गया था। हम लोग अपने दैनिक कार्यों में लग
गये। उसके बाद आज तक ऐसी किसी घटना की पुनरानृत्ति मेरे साथ नहीं हुई।
मैंने तो इसे झेला है और तब से मैं परलोक को मानने लगा
हूँ। मगर आप इसे क्या कहेंगे?
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 7 अक्तूबर 2012
"बातें उस लोक की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इसी तरह की कुछ घटना १९७८ में मेरे साथ मेरे साथ हुई थी,मै ६ घंटे तक बेहोश रहा,यमलोक में यमराज के पास ६ घंटे तक पाप पुन्य का लेखा जोखा होता रहा,और उसका असर हप्तों तक रहा,,,,घटना शेयर करने के लिये आभार,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
आगे कभी हमारे साथ हुआ तो ये घटना काम आयेगी
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक, दिव्यलोक का दर्शन..
जवाब देंहटाएंवाह: देव लोक के दर्थन..रोचक
जवाब देंहटाएंगाफिल जी अति व्यस्त हैं, हमको गए बताय ।
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना देख के, चर्चा मंच ले आय ।
adbhut anubhav..............
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंमैं तो वाकई नहीं समझ पा रहा हूं कि क्या कहूं..
जवाब देंहटाएंलेकिन उसके बाद ऐसा नहीं हुआ, बस ये अच्छी बात है।
दिव्य दर्शन का अनुभव वाकई बढिया है
"अनोखा संस्मरण"
जवाब देंहटाएंलगभग 25 साल पुरानी बात है! उन दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर......(ग्राउंड फ्लोर ).... पर था।
बराम्दे......(बरामदे ).... में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं ...
किसी अंग में न तो कोई खरौच....(खरोंच ).. थी और न ही कोई पीड़ा थी।
वैज्ञानिक व्याख्या यह है आप उनींदे गए ,नींद में चलते रहे ,गिर पड़े पुन :उठे सोते सोते ही बिस्तर पे लौट भी आये वही खाब आया .आपकी नींद में खलल पड़ी आप जग गए .
खाब (ख़्वाब )दो प्रकार के होतें हैं -
कामयाब खाब /सक्सेसफुल
गैर कामयाब /असफल ./अन -सक्सेसफुल ड्रीम्स
खाब हमारी नींद की हिफाजत करते हैं भेष बदलके आतें हैं .जब पेशाब के प्रेशर से मूत्राशय पे बढ़ते दवाब से हमारी नींद टूट जाती है हम खाब देख रहे होते हैं जो असफल खाब होतें हैं वह याद रहतें हैं .जो कामयाब होतें हैं वह याद नहीं रहते ,जो कहता है मैं खाब नहीं देखता वह वास्तव में सफल खाब देखता है घोड़े बेचके सोता है .स्वर्ग नरक की झांकी में बच्चे यमराज का किस्सा माँ बाप से सुनतें हैं केलेंडर में भी देखते हैं वही भेष बदलके आ जाता है .जो स्त्री आपको अच्छी लगती है लेकिन अप्राप्य होती है वह खाब में आजाती है .आपके अभावों की पूर्ती करते हैं खाब न आयें तो आदमी पागल हो जाए .
इसमें अजूबा बिलकुल नहीं है कुछ लोग तो बाकायदा नींद में चलते हैं .फ्रिज से निकालके चीज़ें खातें हैं सोते सोते पुन : सो जाते हैं कई बाहर भी घूम आते हैं सोते सोते आप भी पेशाब कर लिए सोते सोते अवचेतन ले गया बाथ रूम क्योंकि ब्लेडर दवाब में था .इति .फिर कभी इस विषय पर विस्तार से -स्लीप वाकिंग पर पूरा आलेख पढियेगा .आभार इस संस्मरण के लिए .
्शायद पहले भी पढा था ये वाकया ।
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar SharmaOctober 8, 2012 10:07 PM
जवाब देंहटाएंख़्वाब में दिव्य दर्शन के बारे में एक बात और :
जो मरीज़ मरणासन्न अवस्था में होते हैं terminally ill होतें हैं मसलन कैंसर की अंतिम अवस्था वाले मरीज़ कई अन्य उन पर कई माहिर प्रयोग कर रहें हैं .near death experience
मौत के मुंह में जाके लौट आने की ये बात करते हैं सभी के अनुभवों में एक बात कोमन थी सब अपने अपने धार्मिक विश्वासों और आस्थाओं के अनुरूप ईश दर्शन की बात करतें हैं .विज्ञान की भाषा में इन्हें कहा जाता है religious hallucinations .(धार्मिक विभ्रम ,जो नहीं है वह देखना ).
(17)
"बातें उस लोक की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
“मैं एक अनोखे और आनन्दमय संसार में पहुँच गया था। जहाँ पर मैंने विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन किये। यमराज से मेरा सीधा सम्वाद भी हुआ। जहाँ पर वो अपने गणनाकार से कह रहे थे कि इसे तो अभी बहुत जीना है। इसकी उम्र तो अभी पचास साल और है। तुम इसे यहाँ क्यों ले आये हो।“
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar SharmaOctober 8, 2012 9:42 AM
"अनोखा संस्मरण"
लगभग 25 साल पुरानी बात है! उन दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर......(ग्राउंड फ्लोर ).... पर था।
बराम्दे......(बरामदे ).... में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं ...
किसी अंग में न तो कोई खरौच....(खरोंच ).. थी और न ही कोई पीड़ा थी।
वैज्ञानिक व्याख्या यह है आप उनींदे गए ,नींद में चलते रहे ,गिर पड़े पुन :उठे सोते सोते ही बिस्तर पे लौट भी आये वही खाब आया .आपकी नींद में खलल पड़ी आप जग गए .
खाब (ख़्वाब )दो प्रकार के होतें हैं -
कामयाब खाब /सक्सेसफुल
गैर कामयाब /असफल ./अन -सक्सेसफुल ड्रीम्स
खाब हमारी नींद की हिफाजत करते हैं भेष बदलके आतें हैं .जब पेशाब के प्रेशर से मूत्राशय पे बढ़ते दवाब से हमारी नींद टूट जाती है हम खाब देख रहे होते हैं जो असफल खाब होतें हैं वह याद रहतें हैं .जो कामयाब होतें हैं वह याद नहीं रहते ,जो कहता है मैं खाब नहीं देखता वह वास्तव में सफल खाब देखता है घोड़े बेचके सोता है .स्वर्ग नरक की झांकी में बच्चे यमराज का किस्सा माँ बाप से सुनतें हैं केलेंडर में भी देखते हैं वही भेष बदलके आ जाता है .जो स्त्री आपको अच्छी लगती है लेकिन अप्राप्य होती है वह खाब में आजाती है .आपके अभावों की पूर्ती करते हैं खाब न आयें तो आदमी पागल हो जाए .
इसमें अजूबा बिलकुल नहीं है कुछ लोग तो बाकायदा नींद में चलते हैं .फ्रिज से निकालके चीज़ें खातें हैं सोते सोते पुन : सो जाते हैं कई बाहर भी घूम आते हैं सोते सोते आप भी पेशाब कर लिए सोते सोते अवचेतन ले गया बाथ रूम क्योंकि ब्लेडर दवाब में था .इति .फिर कभी इस विषय पर विस्तार से -स्लीप वाकिंग पर पूरा आलेख पढियेगा .आभार इस संस्मरण के लिए .
शास्त्री जी !स्पैम बोक्स कोंग्रेसी हो गया है सब कुछ कहा रहा है .टिपण्णी निकालो पेट खोल
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी !स्पैम बोक्स कोंग्रेसी हो गया है सब कुछ खा रहा है .टिपण्णी निकालो पेट खोल के .
जवाब देंहटाएंमैंने एक किताब पढ़ी थी लाइफ आफ्टर लाइफ. वह एक जर्मन लेखक के 12 वर्षों के शोध का प्रतिफल था. उसे उसने अल्प काल के लिए मृत्यु का अनुभव प्राप्त किये लोगों के साक्षात्कार के आधार पर लिखा था. ज्यादातर विदेशियों का ही साक्षात्कार था. उसमें अधिकांश लोगों के अनुभव आपसे मिलते जुलते थे. वे हिन्दू नहीं थे लेकिन उनके अनुभव हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित परलोक की ताईद करते थे. यह पुस्तक मिले तो जरूर पढ़िए. मैं भी तर्क और विज्ञानं की कसौटी पर चीजों को परखता हूँ. लेकिन बहुत सी चीजें हैं जहाँ विज्ञानं मौन हो जाता है या नकारात्मक हठधर्मिता का सहारा लेता है. वह पुस्तक मिले तो जरूर पढ़िए. अपने ज़माने की बेस्टसेलर किताब थी. संभवतः सातवें दशक में इसका प्रकाशन हुआ था.
जवाब देंहटाएंअनोखा संस्मरण । रोचक भी ।
जवाब देंहटाएंbadhiyaa hai!
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