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सात्विक प्रस्तूति!! शुभेच्छा को प्रणाम!!
जवाब देंहटाएंऔर
मनुष्य भी कहां बचे जा रहे है।
धान्य के बदले मवाद खा रहे है।
अब वनों का खो गया अस्तित्व है।
जवाब देंहटाएंहोम सारा हो गया अपनत्व है।। .....
बहुत गंभीर गीत! अब प्रकृति, पर्यावरण और आम जन हाशिये पर चले गए हैं...
आज के युग का कडवा सच है ये।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
गाय-भैसों को मनुज खाने लगे।
जवाब देंहटाएंयूरिया का दूध अपनाने लगे।।
दिल-जिगर के रोग अब बढ़ने लगे।
सभ्यता से लोग अब लड़ने लगे।।
और अफ़सोस कि ये इसे पचा भी लेते है !
khoobsurat chitran ke saath saarthak vyaakhyaa!
जवाब देंहटाएंgaay ke madhyam se prakarti aur paryavaran ke vishay me aapne behad achchi rachna likhi hai.her ek rachna prernadayak.
जवाब देंहटाएंस्थितियां खराब हो रही हैं लगातार..
जवाब देंहटाएंसही कहा आप ने स्थिति इतनी ही भयानक हो गई है |
जवाब देंहटाएंसटीक वर्णन आज के हालात का.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
बड़ी प्रेरणादायी बातें ;
जवाब देंहटाएंग्राम -चौपाल में पधारने के लिए आभार .
बहुत सार्थक.
जवाब देंहटाएंगाय-भैसों को मनुज खाने लगे।
जवाब देंहटाएंयूरिया का दूध अपनाने लगे।।
बाकि कहने को क्या बचा........
आपका लेखन सार्थक हुवा.
ओह...मन मोह गयी आपकी यह सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंकितना सही कहा आपने....प्रगति का यह रूप सचमुच उद्वेलित कर जाता है...
समस्या की भयावहता को प्रभावशाली ढंग से रेखांकित करती इस सुन्दर रचना के लिए आपका साधुवाद !!!!
very good Shashtri darling.
जवाब देंहटाएंlove you darling take care
एक बहुत कटु सत्य से अवगत करती पोस्ट..
जवाब देंहटाएंइन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
जवाब देंहटाएंस्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। क्या अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?