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mantramugdh karne wali rachna!
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंपुरानी होकर भी कितनी ताज़ा है ! कड़वी सच्चाइयां बल खाकर मुखर हुई हैं :
'अगर है जेब खाली तो जगत मूरख बताता है !'
पुराने चावल जब चूल्हे पर चढ़ते हैं, तो घर-भर में अपनी सुगंध फैला देते हैं ! बहुत खूब ! बधाइयाँ !
साभिवादन--आ.
खुदा सबके लिए ही, खूबसूरत जग बनाता है।
जवाब देंहटाएंमगर इस दोजहाँ में, स्वार्थ क्यों इतना सताता है ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति सर ...आभार
पड़ा जब काम तो, रिश्ते बने मजबूत और गहरे,
जवाब देंहटाएंनिकल जाने पे मतलब, भंग सम्बन्धों का नाता है।
सत्य सुन्दरता से व्यक्त हुआ है!
आभार!!!
बहुत सटिकता से कही गई बात.
जवाब देंहटाएंरामराम.
डॉ शास्त्री जी !! इतनी सुन्दर रचना जो हर लिहाज से पूर्ण है और हमेशा ताज़ी रहेगी .. आत्म मंथन के लिए मजबूर करेगी .....
जवाब देंहटाएंवटवृक्ष में मेरी कविता " खुद से खुद की बातें " आपने पसंद कीं और टिपण्णी की - धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल लेकिन एक शेर और चाहिये था ।
जवाब देंहटाएंहमने तो पहली बार पढी है हमारे लिये नई ही है। बहुत खूब अशार हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंआज की सचाई लिये हे आप् की यह रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं रह जाते हैं मेरे पास...
जवाब देंहटाएंनई सी ताजगी लिए विचारों की.. प्रेरणा की.. नई सी ग़ज़ल हमारे लिए
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी!
जवाब देंहटाएंआपकी फरमाइश पर गजल के चार मिसरे पूरे कर दिये हैं!
यथार्थ व्यक्त करती,बहुत अच्छी ग़ज़ल .....ये शायर से इतनी नाराज़गी क्यों है :)
जवाब देंहटाएंye utni hi taazi hai jitni purane dinon se judi yaadein ... bahut sunder rachna shastri ji ...
जवाब देंहटाएंजीवन की हकीकत समेटे हुए एक संवेदनशील रचना ......
जवाब देंहटाएंइन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
जवाब देंहटाएंस्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?