कुछ शब्दचित्र बरसात बीत गई है गंगाराम सुबह-सवेरे उठकर अपने एक अदद मरियल टट्टू को लेकर चल पड़ा है दूर मिट्टी की खदान पर -- अब वह लौट आया है मिट्टी की एक खेप लेकर रामकली ने दो रोटी और चटनी उसको परोस दी है यही तो छप्पन-भोग है गंगाराम का -- अब राम कली ने नल की हत्थी संभाल ली है सात साल की रेखा और दस साल का चरन प्लास्टिक की छोटी सी बाल्टी से गंगाराम द्वारा लाई गई मिट्टी को भिगोने में लगे हैं -- गंगाराम पैरों से गीली मिट्टी को गूँथ रहा है रामकली मिट्टी के पिण्डे बनाने में लगी है -- आँगन में गुनगुनी धूप में बिछा हैं चाक छोटे-छोटे दीप सजे हैं यही तो हैं इनकी दिवाली कच्चे दीपक लगते हैं प्यारे यही तो हैं पूरे परिवार की आँखों के तारे -0-0-0-0-0- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 31 अक्तूबर 2010
“आँखों के तारे!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
एक बेहतरीन रचना बहुत कुछ कह गयी।
यही तो हैं
जवाब देंहटाएंइनकी दिवाली
sundar!
tyohaaron ke arth bhi bhinn hai sabon ke liye apni sthitiyon paristhitiyon ke aadhar par..
वाह, दीप तले अंधेरा क्या होता है, इस रचना के ज़रिए आपने प्रकाश डाला।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्दचित्र...शुभ दीपावली...
जवाब देंहटाएं,
जवाब देंहटाएंआजकी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं बधाई |
आशा
बहुत संवेदनशील ...कोरे दिए से ही मनेगी इनकी दीपावली ...बस सब बिक जाएँ .
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन उस दिए बनाने वाले की दीपावली का.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता... सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश देती हे आप की यह कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइनकी मेहनत से ही हमारी दिवाली रोशन होती है..
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंek sahaj swabhawik chhata bikherti rachna
जवाब देंहटाएंadbhut !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावमयी और सामाजिक सत्य व्यक्त करती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और भावमयी रचना शास्त्री जी .... जब दिवाली आती है तभी तो उनकी भी दिवाली होती है ...आभार
जवाब देंहटाएंचलो साल मे एक दिन इन गरीबों की भी चाँदी होते है। उमदा रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंमयंक जी, सचमुच मन को भा गई आपकी कविता। बधाई तो स्वीकारनी ही होगी।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
मयंक जी, सचमुच मन को भा गई आपकी कविता। बधाई तो स्वीकारनी ही होगी।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
सरल और सहज जीवन की ऐसी सुंदर अभिव्यक्ति आजकल कम ही देखने को मिलती है. एक खूबसूरत और संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बेहद सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.