कुछ शब्दचित्र बरसात बीत गई है गंगाराम सुबह-सवेरे उठकर अपने एक अदद मरियल टट्टू को लेकर चल पड़ा है दूर मिट्टी की खदान पर -- अब वह लौट आया है मिट्टी की एक खेप लेकर रामकली ने दो रोटी और चटनी उसको परोस दी है यही तो छप्पन-भोग है गंगाराम का -- अब राम कली ने नल की हत्थी संभाल ली है सात साल की रेखा और दस साल का चरन प्लास्टिक की छोटी सी बाल्टी से गंगाराम द्वारा लाई गई मिट्टी को भिगोने में लगे हैं -- गंगाराम पैरों से गीली मिट्टी को गूँथ रहा है रामकली मिट्टी के पिण्डे बनाने में लगी है -- आँगन में गुनगुनी धूप में बिछा हैं चाक छोटे-छोटे दीप सजे हैं यही तो हैं इनकी दिवाली कच्चे दीपक लगते हैं प्यारे यही तो हैं पूरे परिवार की आँखों के तारे -0-0-0-0-0- |
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रविवार, 31 अक्टूबर 2010
“आँखों के तारे!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
एक बेहतरीन रचना बहुत कुछ कह गयी।
यही तो हैं
जवाब देंहटाएंइनकी दिवाली
sundar!
tyohaaron ke arth bhi bhinn hai sabon ke liye apni sthitiyon paristhitiyon ke aadhar par..
वाह, दीप तले अंधेरा क्या होता है, इस रचना के ज़रिए आपने प्रकाश डाला।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्दचित्र...शुभ दीपावली...
जवाब देंहटाएं,
जवाब देंहटाएंआजकी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं बधाई |
आशा
बहुत संवेदनशील ...कोरे दिए से ही मनेगी इनकी दीपावली ...बस सब बिक जाएँ .
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन उस दिए बनाने वाले की दीपावली का.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता... सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश देती हे आप की यह कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइनकी मेहनत से ही हमारी दिवाली रोशन होती है..
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंek sahaj swabhawik chhata bikherti rachna
जवाब देंहटाएंadbhut !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावमयी और सामाजिक सत्य व्यक्त करती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और भावमयी रचना शास्त्री जी .... जब दिवाली आती है तभी तो उनकी भी दिवाली होती है ...आभार
जवाब देंहटाएंचलो साल मे एक दिन इन गरीबों की भी चाँदी होते है। उमदा रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंमयंक जी, सचमुच मन को भा गई आपकी कविता। बधाई तो स्वीकारनी ही होगी।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
मयंक जी, सचमुच मन को भा गई आपकी कविता। बधाई तो स्वीकारनी ही होगी।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
सरल और सहज जीवन की ऐसी सुंदर अभिव्यक्ति आजकल कम ही देखने को मिलती है. एक खूबसूरत और संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बेहद सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.