- मखमली सा ख्वाब, हर दिल में मचलता है।गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।रात हो, दिन हो, उजाला या अन्धेरा हो,पुष्प के सौन्दर्य पर, षटपद मचलता है।गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।।जेठ की दोपहर हो या माघ की शीतल पवन,प्रेम का सूरज हृदय से ही निकलता है।गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।।रास्ते होगें अलग, पर मंजिलें तो एक हैं,लक्ष्य पाने को सफर दिन-रात चलता है।गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।।आँधियाँ हरगिज बुझा सकती नही नन्हा दिया,प्यार का दीपक, हवा में तेज जलता है।गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।।(चित्र गूगल छवि से साभार)
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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
"सुमन दुनिया को छलता है!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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khoobsurat prastuti maharaj!
जवाब देंहटाएंमन को प्रसन्न कर देने वाली रचना ।
जवाब देंहटाएंमनमोहक रचना है...बार बार पठनीय।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है.nice
जवाब देंहटाएंसुन्दर.
जवाब देंहटाएंपुष्प के सौन्दर्य पर, षटपद मचलता है
जवाब देंहटाएंये बिम्ब मुझे अच्छा लगा। षटपद -- हेक्सापोडा।
सरस और रोचक कविता।
बड़ी ही मनोहारी ...सकारात्मक सन्देश देती रचना.
जवाब देंहटाएंसर, कोई विषय तो छोड़ दीजिये :) और मुझे अपनी शरण में ले लीजिये...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएंbadhiya rachana
जवाब देंहटाएंबड़ा सहज सा खूबसूरत सा गीत
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन रचना है…………आभार्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत अगर छलता की जगह लुभाता है होता तो फूल की उपयोगिता बढ जाती। बधाई।
जवाब देंहटाएंमयंक जी, आपके कद के अनुकूल एक शानदार रचना।
जवाब देंहटाएं..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
मखमली ख्याल की कल्पना आपजैसे लेखक ही कर सकते हें |पोस्ट बहुत अच्छी लगी बधाई
जवाब देंहटाएंआशा