अपनी व्यथा-कथा को, कैसे जग को आज सुनाऊँ!! गली-गली हैं चोर-लुटेरे, पथ में छाया अँधियारा, कौन डगर से अपने घर को, सही-सलामत जाऊँ! अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर, मँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ! ग़ज़ल-गीत से मन भर जाता, पेट नहीं भरता है, धन-दौलत की पौध खेत में, कैसे अब उपजाऊँ! रिश्तेदारी नही रही अब, लोभी हुआ ज़माना, वर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ! महफिल में सफेद कौओं को, “रूप” परोसा जाता, बाज़ों से भोली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ! |
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शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011
" उपहार कहाँ से लाऊँ" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
जवाब देंहटाएंमँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!
रिश्तेदारी नही रही अब, लोभी हुआ ज़माना,
वर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ!
बिल्कुल सही लिखा है आपने! सटीक पंक्तियाँ! ज़माना बदल गया है! सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
कुछ लिखकर चुप बैठूँ, या अन्तर्मन में कुछ गाऊँ!
जवाब देंहटाएंअपनी व्यथा-कथा को, कैसे जग को आज सुनाऊँ!!
Wah...
मन की कश्मकश को कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/2011/10/blog-post_13.html
रिश्तेदारी नही रही अब, लोभी हुआ ज़माना,
जवाब देंहटाएंवर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ!
महफिल में सफेद कौओं को, “रूप” परोसा जाता,
बाज़ों से भोली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ
आज के सच को बयाँ करती बहुत उत्तम अभिव्यक्ति।
अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
जवाब देंहटाएंमँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!
सटीक लिखा है आपने
अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
जवाब देंहटाएंमँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!....सटीक लिखा है आपने..अभार..
wah. bahut achcha likhe.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
जवाब देंहटाएंरिश्तेदारी नहीं रही अब लोभी हुआ ज़माना
जवाब देंहटाएंवर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ
वाह वाह .... बहुत सुंदर प्रस्तुति सर बहुत खूब
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंयह पशोपेश बड़ा भारी है।
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई बयाँ क्र दी आप की रचना ने ..
जवाब देंहटाएंगली-गली हैं चोर-लुटेरे, पथ में छाया अँधियारा,
कौन डगर से अपने घर को, सही-सलामत जाऊँ!
शुभकामनाएँ!
सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंआज के सच को बयाँ करती बहुत उत्तम अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमहफिल में सफेद कौओं को, “रूप” परोसा जाता,
जवाब देंहटाएंबाज़ों से भोली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ!
बहुत ही सुन्दर बधाई हो आपको धन्यवाद आपका वर्तमान के स्तिथि को दिखने का
bahut sundar likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंग़ज़ल-गीत से मन भर जाता, पेट नहीं भरता है,
जवाब देंहटाएंधन-दौलत की पौध खेत में, कैसे अब उपजाऊँ!
stya vachan.....