आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास। जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।। दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद। बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।। पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष। अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।। बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव। मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।। एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व। व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।। |
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बुधवार, 19 अक्तूबर 2011
"दोहे-अहोई-अष्टमी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ..
खूबसूरत दोहे
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा कल के चर्चा मंच पर भी है
सुन्दर व्याख्या।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachana hai
जवाब देंहटाएंव्रत के महात्यम को बताती सुन्दर भावमय कविता... अहोई व्रत के उपलक्ष्य पर शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंखूबसूरत दोहे सुन्दर व्याख्या।
जवाब देंहटाएंएक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
जवाब देंहटाएंबहुत सचेतक सुन्दर दोहे सर,
सादर बधाई....
bahut uttam mahan baat kahi hai aapne in doho ke madhyam se.
जवाब देंहटाएंdr.saheb putri-parv ke mai ghor paksh m hun.ye roze hi hona chahiye,inke na hone se koun karava chouth ka vart lambi umar ke liye rakhega ?.sadhuwad
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंएक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
जवाब देंहटाएंव्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।। वाह शास्त्री जी ये कही है बात्………वैसे आपको बता दूँ हम तीन बहने है और मेरी मम्मी हमारे लिये ही व्रत पूजन करती रही उम्र भर्………और हम भी अपने दोनो बच्चो के सुखी जीवन की कामना करते है ना कि सिर्फ़ पुत्र के लिये………अब सोच काफ़ी बदलने लगी है ………आपने तो बहुत ही बढिया बात कह दी इसके लिये आपकी उत्तम सोच को सलाम्।
kitni sahjta se keh gaye goodh baat!
जवाब देंहटाएंkitni sahjta se keh gaye goodh baat!
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