बरगद का एक पेड़ लगाया था, आदर्शों के ऊँचे चबूतरे पर, इसको सजाया था। कुछ ही समय में, यह देने लगा शीतल छाया, परन्तु हमको, यह फूटी आँख भी नही भाया। इसकी शीतल छाया में, हम पूरी तरह डूब गये, और जल्दी ही, इसके सुखों से ऊब गये। इसकी एक बड़ी साख, और अपने नापाक इरादों से, बना डाला एक पाक। हम अब भी लगे हैं, इस वृक्ष को काटने में, अपने कारनामों से, लगे है दिलों को बाँटने में। हे बूढ़े बरगद! तूने हमारी हमेशा, धूप और गर्मी से रक्षा की, और हमने तेरी, हर तरह से उपेक्षा की। क्या तुझको आभास नही था, हर परिवार में बुड्ढों की यही होती गति है, बूढ़े बरगद! आज तेरी भी, यही नियति है।। |
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सोमवार, 20 अगस्त 2012
"बरगद का पेड़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत गहन बात कही है बूढ़े दरख़्त के माध्यम से सच में यह एक कडवी सच्चाई है |बहुत अच्छा लिखा है ,शास्त्री जी इसे कल के चर्चामंच में पोस्ट कर दीजिये
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी...सच हमने बरगद की कद्र नहीं जानी...आज इसकी शाखाएं भी एक-दूसरे से अनजान हैं...
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 22/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशाखायें स्वयं को जड़ समझने लगीं..
जवाब देंहटाएंएक तरफ हिन्दुस्तान और दूसरी तरफ घर का बुजुर्ग बरगद का रूपक दोनों को रूपायित कर गया , हमने काट डाली,
जवाब देंहटाएंइसकी एक बड़ी साख,
और अपने नापाक इरादों से,
बना डाला एक पाक।
हम अब भी लगे हैं,
इस वृक्ष को काटने में,बाज़ नहीं आते आज भी क्षेत्र वाद के बाज़ ,काट रहें हैं शाख पे शाख ,बेंगलूर में कबूतर उड़ा रहें हैं कभी असम में ये बाज़ ....बढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी की .यहाँ "साख "तो ब्रांच (शाखा )के सन्दर्भ में है न की रेप्युटेशन के ,कवि को बेहतर मालूम है हमें तो सिर्फ जिज्ञासा है .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 20 अगस्त 2012
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक
बहुत सुन्दर....गहन अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
काश! कोई बरगद की वेदना को समझे !!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!बरगद को ????
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंफिर भी बरगद तो बरगद है !
गहन अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंजीते हैं हम आजकल, टुकड़े टुकड़े टूट |
जवाब देंहटाएंथी अखंड गुजरी सदी, मची लूट पर लूट |
मची लूट पर लूट, कूटनीतिज्ञ लूटते |
मियाँमार सीलोन, सिन्धु बंगाल टूटते |
हरा भरा संसार, हराया अपनों ने ही |
नेही था घरबार, काटते पावन देहीं ||
sach kaha aapne budhe bargad ki yahi niyati hai.jo aaj ke samaj me vridh jano ki hai.nice presentation.जनपद न्यायाधीश शामली :कैराना उपयुक्त स्थान
जवाब देंहटाएंविचारणीय अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहर परिवार में
जवाब देंहटाएंबुड्ढों की यही होती गति है,
बूढ़े बरगद!
आज तेरी भी,
यही नियति है।।
वर्तमान का कडुवा सच.
बूढ़े बरगद समान वृद्धों और देश दोनों की नियति एक समान ही लग रही है आजकल !
जवाब देंहटाएंदुखी कर देने वाला यथार्थ!
गहन भाव लिए अक्षरश: सच कहा है आपने ... आभार
जवाब देंहटाएंबरगद के पेड के साथ बुजुर्गों की दशा के बारे में तुलना करती हुई शानदार रचना /बधाई आपको
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
जवाब देंहटाएंगहन भाव...............आभार
जवाब देंहटाएंबरगद के माध्यम से बहुत सारे कडवे सच उजागर कर दिए आपने ......सार्थक रचना !!!
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति .... आज बरगद की किसी को चाह नहीं होती
जवाब देंहटाएंekdam satik rachna....aaj har taraf aisa hi ho raha hai...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ..अति उत्तम..
जवाब देंहटाएंpedon ko bachaana hai!!
जवाब देंहटाएं