छमछम-छमछम वर्षा आई। रेंग रही हैं बहुत गिजाई।। पेड़ों की जड़ के ऊपर भी, कच्ची मिट्टी में भूपर भी, इनका झुण्ड पड़ा दिखलाई। ईश्वर के कैसे कमाल हैं, ये देखो ये लाल-लाल हैं, सीधी-सरल बहुत हैं भाई। भोली-भाली, कितनी प्यारी, धवल-धवल तन पर हैं धारी, कितनी सुन्दर काया पाई। |
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शनिवार, 4 अगस्त 2012
"...गिजाई..." (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कहां कहां से खोज लाते हों आप विषय लिखने के लिए .....
जवाब देंहटाएं:))
बाप रे, देखते ही एक अजीब सा अवुभव होता था..
जवाब देंहटाएंओह्ह्ह देखकर मन सिहर जाता है. इस पर भी रचना, वाह, कमाल है.
जवाब देंहटाएंan untouched insect on which a poem was written perhaps first time
जवाब देंहटाएंअनोखा विषय खोजा है शास्त्री जी ... बच्चों के मन को भाये .... बड़ों को झुरझुरी आ जाए ... सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंguru ji to mitti se bhee vishay nikaal lete hain...
जवाब देंहटाएंguru jee....agli baar kuchh mitti se sambandhit likhiyegaa!!
ghar se gijai kese bhagay
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