कौन थे? क्या थे? कहाँ हम जा रहे? व्योम में घश्याम क्यों छाया हुआ? भूल कर तम में पुरातन डगर को, कण्टकों में फँस गये असहाय हो, वास करते थे कभी यहाँ पर करोड़ो देवता, देवताओं के नगर का नाम आर्यावर्त था, काल बदला, देव से मानव कहाये, ठीक था, कुछ भी नही अवसाद था, किन्तु अब मानव से दानव बन गये, खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता, मूल्य मानव के सभी तो मिट गये, शारदा में पंक है आया हुआ, हे प्रभो! इस आदमी को देख लो, लिप्त है इसमे बहुत शैतानियत, आज परिवर्तन हुआ कैसा घना, हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत। |
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बुधवार, 28 अप्रैल 2010
‘‘प्रश्न जाल’’ ‘‘चम्पू छन्द’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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काल बदला, देव से मानव कहाये,
जवाब देंहटाएंठीक था, कुछ भी नही अवसाद था,
किन्तु अब मानव से दानव बन गये,
खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता
सच्चाई को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ! हमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना!
शास्त्री जी सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
जवाब देंहटाएंहो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
सुन्दर
बहुत सुन्दर
बहुत ही उत्तम रचना और वक्त की सच्चाई दिखाती हुई...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंumdaa rachnaa guru ji.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम
हे प्रभो! इस आदमी को देख लो,
जवाब देंहटाएंलिप्त है इसमे बहुत शैतानियत,
आज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
बिल्कुल सही है !!
इसी प्रश्न जाल मे तो इन्सान उलझा हुआ है………………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंbahtrin bahut khub
जवाब देंहटाएंbadhia aap ko is ke liye
shkehar kumawat
बहुत सुन्दर रचना! शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंbahut sundar!
जवाब देंहटाएंवाह जि बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह रचना. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंचम्पू छंद की विशेषता बताएँ...
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,
जवाब देंहटाएंकितना बदल गया इंसान।