तन्हाई के आलम में पल-पल, जब उनकी याद सताती है! दिन कट जाता जैसे-तैसे, पर रात बहुत तड़पाती है!! गुलशन से चुराया था जिनको, जुल्फों में सजाया था उनको, दो दिन की जुदाई भी हमसे, अब सहन नही हो पाती है! दिन कट जाता जैसे-तैसे, पर रात बहुत तड़पाती है!! और आँसू पीते रहते हैं. खारे अश्कों को पीने से भी, प्यास नही बुझ पाती है! दिन कट जाता जैसे-तैसे, पर रात बहुत तड़पाती है!! दिखलाई दी उनकी मूरत, उनकी यह मोहक छवि हमको, जीने की राह बताती है! दिन कट जाता जैसे-तैसे, पर रात बहुत तड़पाती है!! |
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मंगलवार, 25 मई 2010
“600वाँ पुष्प-एक पुरानी रचना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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waah shringaar me doobi rachna...bahut achchi...aur antim chitr to bada khoobsoorat laga....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.... एहसासों से भरी हुई....
जवाब देंहटाएंबधाइयाँ और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह शास्त्री जी बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! चित्र के तो क्या कहने! बहुत ख़ूबसूरत चित्र!
जवाब देंहटाएंआप लोग बहुत सौभाग्यशाली हैं...
जवाब देंहटाएंहम गम को खाते रहते हैं,
जवाब देंहटाएंऔर आँसू पीते रहते हैं.
खारे अश्कों को पीने से भी,
प्यास नही बुझ पाती है!
दिन कट जाता जैसे-तैसे,
पर रात बहुत तड़पाती है!!
sabse pahle 600 vi post ki hardik badhayi...........jaldi hi 1000 vi post hamein padhne ko milegi yahi kamna karti hun.
bahut hi sundar aur bhavbhini rachna likhi hai........dil mein utarti chali gayi.
सुंदर चित्र के साथ सुन्दर रचना ....विषय कोई भी हो आपकी कविता बेहतरीन ही होती है .....प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ! अनन्त शुभकामनाएं ।