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वाह प्रभु वाह !
जवाब देंहटाएंमैंने चैतन्य महा प्रभु को नहीं देखा लेकिन आप जैसे महाप्रभु की चैतन्यता ने निहाल कर दिया..आपका शिष्यत्व स्वीकार करलूं और वहीँ उत्तराखंड में ही कहीं रहने लगूं.....ऐसे विचार मानस में धींगा-मुश्ती करने लगे हैं ..कहिये क्या करूं ?
BAHUT KHOOB.... WAH...WAH...
जवाब देंहटाएंआपकी फ़ोटो देखकर तो
जवाब देंहटाएंकहीं पर से भी मुझे नहीं लगता
कि आप सूखे हुए छुहारे हैं!
--
यह आशुगीत तो मेरे सामने ही रचकर
पाँच मिनट के अंदर पोस्ट कर दिया गया!
--
मयंक जी कागज़ पर न लिखकर
सीधे एडिट पोस्ट बॉक्स में लिखते हैं!
--
लिखते क्या हैं : चमत्कार करते हैं!
--
हँसी का टुकड़ा
चमत्कार........
जवाब देंहटाएंबूढ़े हुए तो क्या है,
जवाब देंहटाएंमन में भरा है यौवन,
बहुत खूब
bahut hee badhiya....
जवाब देंहटाएंबूढ़े हुए तो क्या है,
जवाब देंहटाएंमन में भरा है यौवन,
गीतों के जाम में ही,
ढाला हुआ है जीवन,
इस उम्र में भी हम तो,
दुनिया को भा गये हैं!
बहुत बढ़िया.....मन हमेशा ऐसा ही रहना चाहिए....
वाह जी बहुत खुब
जवाब देंहटाएंउतम-उतम-उतम भाई सुन्दर-सुन्दर-सुन्दरतम् भाई वाह पई वाह पई वाह
जवाब देंहटाएंbadiya swaad bheja Albela ji ko..
जवाब देंहटाएंjabse padhi ye kavita,
जवाब देंहटाएंHum gun-guna rahe hain....
Beautiful creation!..
बहुत खूब .....सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंअभी तो मैं जवान हूँ .....................
जवाब देंहटाएंयही शास्त्री जी का मूल मंत्र है !!
जय हो शास्त्री जी आपकी !!
शास्त्रीजी ,
जवाब देंहटाएंआपने गीत अलबेलाजी को समर्पित किया है , आनन्द हम भी ले रहे हैं । कई बार तो आप वाकई कमाल कर देते हैं ।
शब्द अपर्याप्त हैं आपकी ता'रीफ़ के लिए …
आपके मन में चिर यौवन बना रहे …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
यही अदा तो ब्लॉग जगत को भा गई है...कविता और कविता में भाव पिरोना कोई आपसे सीखे...हम तो पहले से ही आपकी लेखनी के कायल थे...ये भी कमाल की रचना..बधाई
जवाब देंहटाएंpyari kavita
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .....सुन्दर रचना शास्त्री जी .
जवाब देंहटाएं