पकने को तैयार खड़े हैं! शाखाओं पर लदे पड़े हैं!!झूमर बनकर लटक रहे हैं! झूम-झूम कर मटक रहे हैं!! कोई दशहरी कोई लँगड़ा! फजरी कितना मोटा तगड़ा!! बम्बइया की शान निराली! तोतापरी बहुत मतवाली!! कुछ गुलाब की खुशबू वाले! आम रसीले भोले-भाले!! |
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भाई वाह इन तस्वीरों ने तो आम के स्वाद तक पहुंचा दिया !
जवाब देंहटाएंचित्र और आमरस में डूबी कविता बहुत स्वादिष्ट लगी....
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सचित्र !
जवाब देंहटाएंखाने का मन कर रहा है.
जवाब देंहटाएंkamaal karte hain aap bhi...kisi par kavita likh dete hain...!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar...ab ham kahan jaayein..khaane ka man kar gaya...
:)
बम्बइया की शान निराली!
जवाब देंहटाएंतोतापरी बहुत मतवाली!!
मुँह में तो पानी ला दिया
बहुत सुंदर चित्र, मुहं मै पानी आ गया इअतने सुंदर सुंदर आम देख कर. ओर आप की रसीली कविता पढ कर. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंmoonh mein pani aa gaya..........ab pahle kha lein phir comment karenge.
जवाब देंहटाएंक्यों ललचा रहे है साहब !!??
जवाब देंहटाएंaam...aam jindagi ka khas swaad :)
जवाब देंहटाएंआपकी बात ही अलग है....
जवाब देंहटाएंलालच आ गया स्वादिष्ट कविता पढ़कर.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता...( रचनाएँ रचवाती हो ) ...चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
खूबसूरत चित्रों के साथ आमों की बहार छाई हुई है ... आपने बहुत ही मधुर अंदाज़ में शब्दों में बाँधा है इस मीठे आम को ...
जवाब देंहटाएंमयंक जी, कविता के आरम्भ में "भोले भाले आम एक आम" आदमी की तरफ इशारा करते है
जवाब देंहटाएंजिनको आम की तरह चूसा जाता है |आम का स्वाद मिल गया |
वाह शास्त्री जी..दिल बाग बाग हो गया:-)
जवाब देंहटाएंअब तो बाजार जाकर आमों की खरीदारी करनी ही पडेगी....
kyon lalcha rahe hain sir
जवाब देंहटाएंवाह -वाह -वाह !!!
जवाब देंहटाएंवाह -वाह -वाह !!!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंगर्मी की छुट्टियां क्या आयीं, शामत आ गई ! पिछले दिनों यात्राओं और व्यस्तताओं से घिरा रहा ! आपके ब्लॉग पर आने का मौक़ा ही नहीं मिला. लेकिन आप नहीं चूकते ! रेणुजी वाले संस्मरण पर आपका आशीर्वाद मिला, मन प्रसन्न हुआ !
कविता पढ़कर पटना के मालदा की याद आ गई ! तस्वीरें तो बला की सुन्दर हैं, मन करता है, झपट पडूँ इन पर !
ऐसी ही कृपा बनाए रखें !
सादर--आ.
वाह शास्त्री जी इतने सुन्दर आम देखकर तो रहा नहीं जा रहा है! पेड़ तो आम से भर गया है और रसीले आम की तस्वीर के तो क्या कहने! शानदार रचना और बेहद सुन्दर चित्र!
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