कल्पनाएँ डर गयी हैं, भावनाएँ मर गयीं हैं, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? पक्षियों का चह-चहाना , लग रहा चीत्कार सा है। षट्पदों का गीत गाना , आज हा-हा कार सा है। गीत उर में रो रहे हैं, शब्द सारे सो रहे हैं, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? एकता की गन्ध देता था, सुमन हर एक प्यारा, विश्व सारा एक स्वर से, गीत गाता था हमारा, कट गये सम्बन्ध प्यारे, मिट गये अनुबन्ध सारे , देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? आज क्यों पागल, स्वदेशी हो गया है? रक्त क्यों अपना, विदेशी हो गया है? पन्थ है कितना घिनौना, हो गया इन्सान बौना, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? आज भी लोगों को, पावस लग रही है, चाँदनी फिर क्यों, अमावस लग रही है? शस्त्र लेकर सन्त आया, प्रीत का बस अन्त आया, देख कर परिवेश ऐसा। हो गया क्यों देश ऐसा?? |
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मंगलवार, 11 मई 2010
हो गया क्यों देश ऐसा ? (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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bahut khoob shashtri ji, " Mindless voters useless govt." thats why this is happening.
जवाब देंहटाएंसही एवम् सटीक चित्रण..आज सब कुछ बदल रहा है..सुंदर ,भावपूर्ण कविता के लिए बधाई शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंI repeat Godiyal ji's "tippanni".
जवाब देंहटाएंबदलते वक़्त पर ....अच्छी अभिव्यक्ति .....एक अच्छी कविता ..बहुत खूब पंडित जी
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त रचना..
जवाब देंहटाएंछा गए गुरु जी ....
जवाब देंहटाएंराम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/
हो गया क्यों देश ऐसा??
जवाब देंहटाएंयह सवाल तो हम सब के जहन में है !!
..सुंदर ,भावपूर्ण कविता के लिए बधाई शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंइस सब के लिए देश का हर व्यक्ति जिम्मेवार है शास्त्री जी.. बढ़िया कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
दीपक 'मशाल की टिपण्णी से सहमत है जी, आप ने बहुत अच्छी कविता लिखी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसटीक चित्रण.!
जवाब देंहटाएंपन्थ है कितना घिनौना,
हो गया इन्सान बौना,!!
bahut khoobsoorat shastri ji.
जवाब देंहटाएंपक्षियों का चह-चहाना ,
जवाब देंहटाएंलग रहा चीत्कार सा है।
षट्पदों का गीत गाना ,
आज हा-हा कार सा है।
गीत उर में रो रहे हैं,
शब्द सारे सो रहे हैं,
देख कर परिवेश ऐसा।
हो गया क्यों देश ऐसा??.....vah.....vah....vah.... pata nahi kis nonsense ko aapki kavita bakbas lagati hai....khair. sabko subhakaamanaaye.
ज्ञानदत्त पांडे ने लडावो और राज करो के तहत कल बहुत ही घिनौनी हरकत की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग - 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है.
जवाब देंहटाएंकृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें. एक तीन लाईन के वाक्य मे तीन अंगरेजी के शब्द जबरन घुसडने वाले हिंदी द्रोही है. इस विषय पर बिगुल पर "ज्ञानदत्त और संजयदत्त" का यह आलेख अवश्य पढें.
-ढपोरशंख
गोदियाल जी से सहमत हूँ……………॥बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति………………पीडा को दर्शाती हुई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया : दिल से निकली आवाज़!
जवाब देंहटाएं--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
जन्म-दिवस पर मिला : मुझे एक अनमोल उपहार!
wah..shuru ki char panktiyaan hi gajab ki hai
जवाब देंहटाएंपंडित जी
जवाब देंहटाएंकैसे हैं।
आपकी कविता पढ़ी लेकिन यहां मैं एक टिप्पणी करना चाहता हूं।
ज्ञानदत्त जैसे लोगों के उटपटांग ज्ञान की वजह से देश की हालात पतली है।
और हां.. आपने चिट्ठा चर्चा में मेरी पोस्ट को शामिल किया उसके लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबड़े गुस्से में रहते हैं लेकिन वे गुस्से को जल्दी ही भूल भी जाते हैं यह बात मैंने महसूस की है। स्नेह बनाए रखें।
छा गए गुरु जी ....
जवाब देंहटाएंhttp://qsba.blogspot.com/
http://madhavrai.blogspot.com/
शानदार और भावपूर्ण रचना! बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंसच को उकेरती शानदार रचना.....देश के प्रति चिता स्वाभाविक है....
जवाब देंहटाएंdil chu lene wali rachan...
जवाब देंहटाएं