मुझे याद जब आता है अपना बचपन। खट्टी-मीठी यादों को लाता जीवन।। गुल्ली-डण्डा और कबड्डी सारे खेल निराले, जब भी खेला करते थे हम हो-होकर मतवाले, किलकारी से गूँजा करता था आँगन। खट्टी-मीठी यादों को लाता जीवन।। बागों से कच्ची अमियों को तोड़-तोड़ लाते थे, भुने चने और नमक मिला कर हम इनको खाते थे, गाँवों में ही पाया है हमने यौवन। खट्टी-मीठी यादों को लाता जीवन।। पाटी और बुदक्का लेकर हम पढ़ने जाते थे, कान्धे पर बस्ता रखकर हम मन में हर्षाते थे, फिर से बालक बनने को करता है मन। खट्टी-मीठी यादों को लाता जीवन।। |
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शनिवार, 8 मई 2010
“बचपन” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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nice
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat kavita hai
जवाब देंहटाएंsach kahun kal hi kuch bachchon ko yahan aam todte dekha tha
tab yahi ahsaas aaya tha
bahut khoob surat hai
बहुत सुंदर यादे जि, चित्र भी यादो के संग सुंदर लगा
जवाब देंहटाएंबहुत सहजता से बचपन को याद किया है...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut bhao liye rachna
जवाब देंहटाएंSashtri ji aap ka contact number mil sakta hai kya?
वाह बुदक्का.... क्या खूब कहने...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत, जिसने
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें ताज़ा कर दीं!
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ले हाथों में हाथ,
आज ख़ुशी का दिन फिर आया!
ख़ुशी : यश तिवारी की अँगरेज़ी कविता का हिंदी भावानुवाद!
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संपादक : सरस पायस
वन्दे मातरम !!
जवाब देंहटाएंमाँ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!
एक और उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ !!
बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...!!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना... मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है जिसे पढ़कर मुझे बचपन की याद आ गयी!
जवाब देंहटाएंसाधे शब्दों में सुन्दर रचना इसे ही कहते है ......बहुत है अछे ढंग से पेश किया है ....लाजवाब ....हम चाहे अलग-अलग हो....शहर से हो या गाँव से ...उम्र में कितना भी फर्क हो .....हमारा सबका बचपन एक जैसा था ....इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए .....धन्यबाद .....और अंत में इतना ही कहूँगा ..की दुनिया की हर माँ के चरणों में मेरा शत-शत नमन .......
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.