जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है। साज और संगीत, रोटी में छिपा है।। रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब, रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब। कीमती सोना व चाँदी, तब तलक, रोटियाँ संसार में हैं, जब तलक। खेत और खलिहान सुन्दर, तब तलक, रोटियाँ उनमें छिपी हों, जब तलक। झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं, एकता और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं। हम सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं, रोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है। रोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं, रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं। याद मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों, याद मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों। राम ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं, पेट की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं। रोटियों से, थाल सजते, आरती के, रोटियों से, भाल-उज्जवल भारती के। रोटियों से बस्तियाँ, आबाद हैं, रोटियाँ खाकर, सभी आजाद हैं। प्यार और मनमीत, रोटी में छिपा है। जिन्दगी का गीत, रोटी मे छिपा है।। |
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शनिवार, 1 मई 2010
“ज़िन्दगी का गीत-एक पुरानी कविता” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
जवाब देंहटाएंरोटी जिन्दाबाद
हर आदमी पेट के लिए ही तो परेशान है...बहुत सही चित्रण...सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया/
जवाब देंहटाएंरोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
जवाब देंहटाएंरोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।
बहुत बढ़िया, सही चित्रण
sahi kaha malik.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंपेट के कारण सब करना पड्ता है सच कहा……॥जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
जवाब देंहटाएंसटीक ....सब पापी पेट के लिए ही करते हैं....सब कुछ रोटी में ही छिपा है
जवाब देंहटाएंमई दिवस पर नमन...
जवाब देंहटाएंक्या बात है, वेसे हमारे नेताओ के हम सब के लिये जीवन का असली मतलब हमारे लिये रोटी ही कर दिया है... ओर जिस के चारो ओर हम घुमते रहते है
जवाब देंहटाएंरोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।
जवाब देंहटाएंरोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।
एक विचारोत्तेजक प्रस्तुति।
अत्यंत सुन्दर कविता! बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ,,,,,,मेरे मन की बात कही दी ..मैं भी इस रोटी के चक्कर में बर्बाद हूँ ...रोटी नहीं मिली इस लिए 'केरला' से पढ़ाई छोड़कर भाग आया ...बस सबसे पहली रोटी बाद में सबकुछ.....आपकी रचना पढ़कर मज़ा गया ...एक बार फिर रोटी को सलाम
जवाब देंहटाएंरोटी माँ तुझे सलाम
जवाब देंहटाएं////////////
जवाब देंहटाएं"जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।
रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।"
मई दिवस के अवसर पर आपने
रोटियों के माध्यम से आम जन के
दर्द को स्वर दिया है।
-सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
जवाब देंहटाएंरोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।
बहुत बढ़िया, सही चित्रण