वानर बैठा है कुर्सी पर, हुई बिल्लियाँ मौन! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? लुटी लाज है मिटी शर्म है, अनाचार में लिप्त कर्म है, बन्दीघर में बन्द धर्म है, रिश्वत का बाजार गर्म है, हुई योग्यता गौण! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? घोटालों में भी घोटाले, गोरों से बढ़कर हैं काले, अंग्रेजी को मस्त निवाले, हिन्दी को खाने के लाले, मैकाले हैं द्रोण! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? संसद में ज्यादातर गुण्डे, मन्दिर लूट रहे मुस्तण्डे, जात-धर्म के बढ़े वितण्डे, वार बन गये सण्डे-मण्डे, पनप रहे हैं डॉन! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 18 मई 2010
“न्याय करेगा कौन?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
घोटालों में भी घोटाले,
जवाब देंहटाएंगोरों से बढ़कर हैं काले,
शास्त्री जी बहुत खूब
वाकई ये काले तो गोरों को भी मात दे दिये
आपने आज के समाज और देश का वास्तविक दर्द बयाँ किया है / लेकिन शास्त्री जी सबसे बड़ा कारण है, लोगों में बैठा डर और झूठी जीने की चाह ,जिसके वजह से लोग किसी भी न्याय और सच का साथ नहीं देना चाहते हैं /
जवाब देंहटाएंघोटालों में भी घोटाले,
जवाब देंहटाएंगोरों से बढ़कर हैं काले,
अंग्रेजी को मस्त निवाले,
हिन्दी को खाने के लाले
सच है न्याय कौन करेगा? सार्थक प्रश्न उठाती सुन्दर रचना
aajkal aapki har rachna mein kafi dard hai aur sahi bhi hai.nyay vyavastha ne to bura hal kar rakha hai.
जवाब देंहटाएंसंसद में ज्यादातर गुण्डे,
जवाब देंहटाएंमन्दिर लूट रहे मुस्तण्डे,
जात-धर्म के बढ़े वितण्डे,
वार बन गये सण्डे-मण्डे,
पनप रहे हैं डॉन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
सच है !!
एक एक शब्द सत्य है शास्त्री जी ! और एक एक शब्द में जान है...बेहतरीन कविता ...
जवाब देंहटाएंस्थितियां बहुत सोचनीय हैं... दुख और क्षोभ आपके गीत से प्रकट हो रहा है..
जवाब देंहटाएंकमाल है!आप अभी भी न्याय की उम्मीद कर रहे है......
जवाब देंहटाएंवैसे आपकी कविता वर्तमान का चेहरा खूब दिखा दिया है!
कुंवर जी,
इस नवगीत की शुरूआत बहुत बढ़िया हुई है!
जवाब देंहटाएं--
गेयता अंत तक बरकरार है! यही इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण ख़ूबी भी है!
--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
हँसी का टुकड़ा छीनने को,
लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!
वानर बैठा है कुर्सी पर,इसी लिये तो सब उलट पलट हो रहा है.... आप ने एक सत्य लिख दिया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
करारा व्यंग्य. बधाई.
जवाब देंहटाएंलुटी लाज है मिटी शर्म है,
जवाब देंहटाएंअनाचार में लिप्त कर्म है,
बन्दीघर में बन्द धर्म है,
रिश्वत का बाजार गर्म है,
हुई योग्यता गौण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
समस्या गंभीर है!
१००% सत्य है महाराज !! बहुत ही उम्दा रचना | बहुत बहुत बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंएक सच्चाई।
जवाब देंहटाएंआइना दिखाती पोस्ट, बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंन्याय जरुर मिलेगा , देर है पर अंधेर नहीं है
जवाब देंहटाएंhttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/