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शनिवार, 22 मई 2010
“उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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अच्छी और भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंदिल्ली के ब्लागर इंटरनेशनल मिलन समारोह में भाग लेने के लिए पहुंचने वाले सभी ब्लागर साथियों को कुमार जलजला का नमस्कार. मित्रों यह सम्मेलन हर हाल में यादगार रहे इस बात की कोशिश जरूर करिएगा। यह तभी संभव है जब आप सभी इस सम्मेलन में विनाशकारी ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए शपथ लें। जलजला भी आप सभी का शुभचिन्तक है और हिन्दी ब्लागिंग को तथाकथित मठाधीशों से मुक्त कराने के एकल प्रयास में जुटा हुआ है. पिछले दिनों एक प्रतियोगिता की बात मैंने सिर्फ इसलिए की थी ताकि लोगों का ध्यान दूसरी तरफ भी जा सकें. झगड़ों को खत्म करने के लिए मुझे यही जरूरी लगा. मेरे इस कृत्य से जिन्हे दुख पहुंचा हो उनसे मैं पहले ही क्षमायाचना कर चुका हूं. हां एक बात और बताना चाहता हूं कि थोड़े से खर्च में प्रतियोगिता के लिए आप सभी हामी भर देते तो भी आयोजन करके इस बात की खुशी होती कि चलो झगड़े खत्म हुए. मैं कल के ब्लागर सम्मेलन में हर हाल में मौजूद रहूंगा लेकिन यह मेरा दावा है कि कोई मुझे पहचान नहीं पाएगा.
जवाब देंहटाएंआप सभी एक दूसरे का परिचय प्राप्त कर लेंगे फिर भी मेरा परिचय प्राप्त नहीं कर पाएंगे. यह तय है कि मैं मौजूद रहूंगा. आपकी सुविधा के लिए बताना चाहता हूं कि मैं लाल रंग की टी शर्ट पहनकर आऊंगा..( बाकी आप ताड़ते रहिएगा.. सब कुछ अभी बता दूंगा तो मजा किरकिरा हो जाएगा .बाकी अविनाशजी मुझे पहचानते हैं लेकिन मैंने उनसे निवेदन किया है कि जब तक सब न पहचान ले तब तक मेरी पहचान को सार्वजनिक मत करिएगा.
आप सभी को शुभकामनाएं. अग्रिम बधाई.
दिवस अन्धेरे थे और रात जगमगाती थी,
जवाब देंहटाएंसुनहरे पिंजड़ों में चिड़ियाएँ फड़फड़ाती थी,
वतनपरस्त यहाँ भी तो गुनहगार मिले!
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले!!
bahut khoob sir lajawaab
हमारे साथ तो बस दिल की दौलतें ही थी,
जवाब देंहटाएंखुदा की बख्शी हुई चन्द नेमतें ही थी,
मगर यहाँ तो हमें सिर्फ खरीदार मिले!
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले!!
Ati sundar !
बहुत सुन्दर रचना, शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंbai behar ka umda kalaam......:)..mujhe khoob achhi lagi ye ghazal ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंjai ho.............
जवाब देंहटाएंbahut khoob !
दिवस अन्धेरे थे और रात जगमगाती थी,
जवाब देंहटाएंसुनहरे पिंजड़ों में चिड़ियाएँ फड़फड़ाती थी,
वतनपरस्त यहाँ भी तो गुनहगार मिले!
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले
बहुत खूबसूरत....आज कल हर जगह यही हालात नज़र आते हैं....
बहुत अच्छी रचना शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !! बधाइयाँ और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंहमारे साथ तो बस दिल की दौलतें ही थी,
जवाब देंहटाएंखुदा की बख्शी हुई चन्द नेमतें ही थी,
मगर यहाँ तो हमें सिर्फ खरीदार मिले!
उदास चेहरे सिसकते हुए हजार मिले!!
लो सबसे बड़ी दौलत तो आपके पास थी और है भी
और खुदा की बख्शी हुई सबसे खूबसूरत और बेशकीमती नेमत तो यही है ,
जो हर किसी के नसीब में भी नही होती
खरीदार ही मिलेंगे भैया
क्योंकि दुनिया का खजाना,दुनिया की सबसे प्यारी चीज आपके पास है तो खरीद दार ही मिलेंगे न, अफ़सोस कैसा ?
हाँ ,उदास और सिसकते हजार चेहरे क्यों हो इस खूबसूरत जहाँ में
काश हर चेहरा मुस्कराता रहे और वही मिले हम सभी को राह में
आप ही को क्यों ?
सब कह डाला अपनी एक रचना में .
जो कहती है देखो मेरा रचनाकार कितना मासूम और संवेदनशील है आज के इस युग में भी .
प्रणाम आपके इस भावुक मन को