♥ कुछ दोहे ♥ मात-पिता तो यत्न से, पाल रहे सन्तान। लेकिन पुत्र न मानते, इनका कुछ अहसान।१। लड़के तो लड़के रहें, लड़ना इनका काम। बेटे ही तो कर रहे, रिश्तों को बदनाम।२। सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान। वो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।३। महँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार। पुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार।४। |
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सोमवार, 12 मार्च 2012
"कुछ दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान !!
सार्थक दोहे सर......
सादर.
आपके दोहे बहत ही उम्दा हैं मयंक जी। सचमुच बेटियाँ आज माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंसदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।३।
सार्थक दोहे......
आपके दोहे बहत ही उम्दा हैं मयंक जी। सचमुच बेटियाँ आज माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंसदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
वो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान !!
bahut behtreen dohe sateek ,sarthak .aaj kal blog par adhik samay nahi de paa rahi hoon teen din pahle maa ka dehaant ho gaya bahut dukhi hoon.
जवाब देंहटाएंकन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
जवाब देंहटाएंरखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ, दबा दें बेटे मन्या *।
सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या ।
*गर्दन के पीछे की शिरा
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
कितने सुन्दर दोहे हैं सर... !! वाह!
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।|
आपने बिलकुल सही कहा बेटो से बेटी ज्यादा
माँ बाप का ध्यान रकहती है
सार्थक सटीक रचना,.....
समाज के कुछ कटु यथार्थ को आपने चित्रित कर दिया है इन दोहों के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंमहँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार।
जवाब देंहटाएंपुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार।४।
बेहतरीन प्रस्तुति ,आभार .
सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआपको शब्दों की महारत है। इतनी सरलता से बात को प्रभावी बना देना तो तभी संभव है जब शब्द आपकी बात मानते हों।
जवाब देंहटाएंबेटियों से ही बेटे मिलते हैं. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसार्थक व सटीक दोहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर व सार्थक रचना....--
जवाब देंहटाएंमहँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार।
जवाब देंहटाएंपुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार...
क्या बात कह दी शास्त्री जी...बहुत खूब...
सार्थक दोहे बहुत खूब हैं
जवाब देंहटाएंसमझते नहीं हैं लोग
करते हैं फिर वही गलती
फिर कहते हैं आगे डूब है !