बहारें ही बहारें थी, बड़े दिलकश नजारे थे। चहकती थीं हसीं कलियाँ, महकते फूल प्यारे थे। हमें हँसना नहीं आया। उन्हें रोना नहीं आया।। मिलन के गीत मन ही मन, हमेशा गुन-गुनाता था। हृदय का शब्द होठों पर, कभी बिल्कुल न आता था। हमें कहना नही आया। उन्हें सुनना नही भाया।। कभी जो भूलना चाहा, जुबां पर उनकी ही रट थी। अन्धेरी राह में उनकी, चहल कदमी की आहट थी। हमें सपना नही आया। उन्हें अपना नही भाया।। बहुत से पत्र लाया था, मगर मजमून कोरे थे। शमा के भाग्य में आये, फकत झोंकें-झकोरे थे। हमें लिखना नही आया। उन्हें पढ़ना नही आया।। बने हैं प्रीत के क्रेता, जमाने भर के सौदागर। मुहब्बत है नही सौदा, सितम कैसे करूँ उन पर। हमें लेना नही आया। उन्हे देना नही भाया।। |
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शनिवार, 10 मार्च 2012
"हमें लिखना नही आया, उन्हें पढ़ना नही आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत प्यारी रचना....
जवाब देंहटाएंहमें कहना नही आया।
उन्हें सुनना नही भाया।।
सादर.
hriday ke bhavon kee sundar abhivyakti.badhai.
जवाब देंहटाएंबने हैं प्रीत के क्रेता,
जवाब देंहटाएंजमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।
हमें लेना नही आया।
उन्हे देना नही भाया।………………वाह बहुत खूबसूरत भाव समन्वय
जबरदस्त पुरानी रचना ।
जवाब देंहटाएंगुरु जी !!
भाव और बहाव अनोखे हैं ।
पुरानी भी पोस्ट करते रहें।
फूल हँसे कलियाँ मुस्काई, कविवर हँसना न आया ।
शब्द हृदय के गीत मिलन के, होंठ पे बसना न आया ।
कोरे कागज़ काले अक्षर, लिखना पढना न आया ।
लेना देना सीख सका न, तुम बिन बढ़ना न आया ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंbadhiya rachna ..
जवाब देंहटाएंhttp://jadibutishop.blogspot.com
गुजरी यादों को अच्छा सजाया आपने !
जवाब देंहटाएंमुबारक हो !
खूबसूरत
जवाब देंहटाएंपुरानी है लेकिन बहुत बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंबने हैं प्रीत के क्रेता,
जवाब देंहटाएंजमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।
सुंदर प्रस्तुति,..........
बने हैं प्रीत के क्रेता,
जवाब देंहटाएंजमाने भर के सौदागर।
मुहब्बत है नही सौदा,
सितम कैसे करूँ उन पर।
हमें लेना नही आया।
उन्हे देना नही भाया।।
औरों से कहा तुमने ,औरों को सूना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सूना होता .
एक एहसास को जगाती नसीब के ...
एक एहसास को जगाती नसीब के ...
जवाब देंहटाएंइस कविता में कुछ ऐसा है जिसकी टीस दिल में समा गई है .. तभी तो उन्हें सुनना नहीं आया हमें कहना नहीं आया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पंक्तियाँ "हमें लेना नहीं आया ,उन्हें देना नहीं आया "
जवाब देंहटाएंउंदा प्रस्तुति |
आशा
हमें लेना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हे देना नही भाया।।
वेदना मन की ,व्यथा मन की ...
बहुत सुंदरता से प्रकट की है ...
सादर
हमें लेना नही आया।
जवाब देंहटाएंउन्हे देना नही भाया।।बहुत अच्छी पंक्तियाँ
वाह वाह... बहुत प्यारी रचना सर...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई..
बहुत से पत्र लाया था,
जवाब देंहटाएंमगर मजमून कोरे थे।
शमा के भाग्य में आये,
फकत झोंकें-झकोरे थे।
हमें लिखना नही आया।
उन्हें पढ़ना नही आया।।
सुन्दर रचना . सिर्फ आदमी होना मयस्सर नहीं है आदमी के लिए .चर्चा का एक एक मोती चुगा है .बहुत खूब चर्चा और उसका संयोजन और प्रस्तुति है जैसे सब कुछ आत्म सात किया हो .
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स वीकली मीट (३४) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह म्हणत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/34-brain-food.html
khoobsurat rachna!
जवाब देंहटाएंकाश मन से मन का यह अन्तर मिट पाता, बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं