गरल भरा हमने गागर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। कथा-कीर्तन और जागरण, रास न आये मेरे मन को। आपाधापी की झंझा में, होम कर दिया इस जीवन को। वन का पंछी डोल रहा है, भिक्षा पाने को घर-घर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। आज धरा-रानी के हमने, लूट लिए सारे आभूषण। नंगे पर्वत, सूखे झरने, अट्टहास करता है दूषण। नहीं जवानी और रवानी, कायरता है नर-नाहर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं, नकली मिलते आज रसायन। हारे का हथियार बचा है, गीता-रामायण का गायन। कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ, सिमटा हूँ छोटी चादर में। कैसे प्यास बुझेगी मन की, खारा जल पाया सागर में।। |
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मंगलवार, 20 मार्च 2012
"गरल भरा हमने गागर में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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स्थितियों परिस्थितियों को उकेरती सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंसादर!
रची उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की दृष्ट --
पलटो पृष्ट ||
बुधवारीय चर्चामंच
charchamanch.blogspot.com
कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ,
जवाब देंहटाएंसिमटा हूँ छोटी चादर में।
पर्यावरण संकट को काव्य में बखूबी ढाला आपने...
जवाब देंहटाएंसादर.
आज धरा-रानी के हमने,
जवाब देंहटाएंलूट लिए सारे आभूषण।
नंगे पर्वत, सूखे झरने,
अट्टहास करता है दूषण।
नहीं जवानी और रवानी,
कायरता है नर-नाहर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
सुंदर पोस्ट
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं,
जवाब देंहटाएंनकली मिलते आज रसायन।
हारे का हथियार बचा है,
गीता-रामायण का गायन।...sndeshprat rachna..
आज धरा-रानी के हमने,
जवाब देंहटाएंलूट लिए सारे आभूषण।
नंगे पर्वत, सूखे झरने,
अट्टहास करता है दूषण।
नहीं जवानी और रवानी,
कायरता है नर-नाहर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
खनन बढ़ा है, खनिज घटे हैं,
नकली मिलते आज रसायन।
हारे का हथियार बचा है,
गीता-रामायण का गायन।
कैसे ओढ़ूँ और बिछाऊँ,
सिमटा हूँ छोटी चादर में।
पर्यावरण सचेत पारि- तंत्रों का सहज मानवीकरण करती भावबोध संसिक्त रचना .बहुत खूब कहा है -
'कैसे इस मन को बहलाऊ गिरजे .-मस्जिद मंदिर जाकर '
बढिया. बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna ! gaagar me sagar bhar diya aapne
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सशक्त प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसही कहा अच्छी चीजों को छोड़ दिया है.
जवाब देंहटाएंबढिया. बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकैसे प्यास बुझेगी मन की,
जवाब देंहटाएंखारा जल पाया सागर में।।
-बहुत सुन्दर गीत!!
sarthak post hae prakrti par manav ki krurta ki prakashtha par dhyan aakarshit karaya hae sir aapne aabhar.
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत , सुन्दर सन्देश
जवाब देंहटाएंवन का पंछी डोल रहा है,
जवाब देंहटाएंभिक्षा पाने को घर-घर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
इस कविता में जहां एक ओर पर्यावरण के प्रति चिंता जताई गई है वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक अनुभूति भी हो रही है।
गरल मिला है,
जवाब देंहटाएंअभी मिलेगा अमृत,
थोड़ा श्रम बाकी है।
sagar jaisee hee gehri rachna!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही गहराई लिए हुए रचना है...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंekdam lazabab.....
जवाब देंहटाएंसमसामयिक दुर्दशा पर तीखा प्रहार ! अतिसुन्दर सर जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ,सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंI'm not sure where you're getting your info, but great topic.
जवाब देंहटाएंI needs to spend some time learning much more or understanding more.
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