वर्तमान है नया-नवेला, कल को होगा यही पुराना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। गोल-गोल है दुनिया सारी, चन्दा-सूरज गोल-गोल है। गोल-गोल में घूम रहे सब, गोल-गोल की यही पोल है। घूम-घूमकर, सारे जग को, बना रहा है काल निशाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। दिन दूनी औ’ रात चौगुनी, बढ़ती जातीं अभिलाषाएँ। देश-काल के साथ बदलतीं, पाप-पुण्य की परिभाषाएँ। धन संचय की होड़ लगी है, लेकिन साथ नहीं कुछ जाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं, बहुत कठिन जीवन की राहें। मंजिल पर जानेवालों की, छोटे पथ पर लगी निगाहें। लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता, जिसने सही मार्ग पहचाना। जीवन के इस कालचक्र में, लगा रहेगा आना-जाना।। |
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शुक्रवार, 25 मई 2012
"लगा रहेगा आना-जाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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sahi kaha guru jee...aana jaana to sansaar ki reet hai....apne jeevak ko kitna saarthak kiya yahee mudde ki baat hai!
जवाब देंहटाएंजीवन के इस कालचक्र में,
जवाब देंहटाएंलगा रहेगा आना-जाना।।
So true ..
.
बहुत सुन्दर भाव दार्शनिक तत्थ्य के साथ बिलकुल सही कहा है
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
जीवन के इस कालचक्र में,
जवाब देंहटाएंलगा रहेगा आना-जाना।।
जीवन का सत्य यही है,....
दिन दूनी औ’ रात चौगुनी,
जवाब देंहटाएंबढ़ती जातीं अभिलाषाएँ।
देश-काल के साथ बदलतीं,
पाप-पुण्य की परिभाषाएँ।
धन संचय की होड़ लगी है,
लेकिन साथ नहीं कुछ जाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
गोल गोला यानी स्फीयर एक सममिति लिए है .प्रकृति इसी सममिति से चलती है प्यार करती है गोल आकार को इसीलिए मेरे भाई फूली हुई रोटी गोल है जीवका प्राथमिक भोजन माँ का स्तन गोल है और सुन भैया परमाणु गोल है .बढ़िया प्रस्तुति .
कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं,
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन जीवन की राहें।
मंजिल पर जानेवालों की,
छोटे पथ पर लगी निगाहें।
लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जिसने सही मार्ग पहचाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना……………यही सत्य है।
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंलेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जवाब देंहटाएंजिसने सही मार्ग पहचाना।
बहुत सुन्दर रचना सर....
सादर.
वर्तमान है नया-नवेला,
जवाब देंहटाएंकल को होगा यही पुराना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
वर्तमान है नया-नवेला,
कल को होगा यही पुराना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
कहती थी यूं मम्मी मेरी ,
नया एक दिन ,सौ दिन रहे पुराना
वस्त्र बदलकर सबको जाना
बहुत अच्छी प्रस्तुति है शाष्त्री जी ,
रोज़ ही रचते एक अ - फ़साना
जीवन का यह रंग दिखा है और दिखा है आना जाना।
जवाब देंहटाएंदिन दूनी औ’ रात चौगुनी,
जवाब देंहटाएंबढ़ती जातीं अभिलाषाएँ।
देश-काल के साथ बदलतीं,
पाप-पुण्य की परिभाषाएँ।
गज़ब के भाव हैं ..सुन्दर कविता.