पिकनिक करने का मन आया! मोटर में सबको बैठाया!! पहुँच गये जब नदी किनारे! खरबूजे के खेत निहारे!! ककड़ी, खीरा और तरबूजे! कच्चे-पक्के थे खरबूजे!! प्राची, किट्टू और प्रांजल! करते थे जंगल में मंगल!! लो मैं पेटी में भर लाया! खरबूजों का मौसम आया!! देख पेड़ की शीतल छाया! हमने आसन वहाँ बिछाया!! जम करके खरबूजे खाये! शाम हुई घर वापिस आये!! |
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बुधवार, 13 जून 2012
"खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह ...बढिया रही ये पिकनिक संग खरबूजों के
जवाब देंहटाएंवाह,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
खाता देख आप सब को
जवाब देंहटाएंहमारे मुहँ में भी पानी आए |
हा हा हा....शुभकामनाएँ!
काश हमें भी नसीब होते ये ताज़े फल.............
जवाब देंहटाएंसादर
वाह तो गोया गर्मी के भी फ़ुल फ़ुल मज़े । बहुत सुंदर जी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंphotoshop ka bahut hee badhiyaa istemaal karte hain aap guru jee
जवाब देंहटाएंखरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
जवाब देंहटाएंपर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।
बिन पानी है दंग, ढूंढता शीतल छाया ।
उत्तरांचल कोयल, इत कोयला गर्माया ।
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
भेजो झोंके चंद, रंग बदले खरबूजे ।।
वाह... सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसादर.
बड़ी मीठी पोस्टें आ रही हैं, कल लीची और आज खरबूजा।
जवाब देंहटाएं