जल
से भर कर लाये छागल!
उमड़-घुमड़
कर आये बादल!!
कुछ
भूरे कुछ श्वेत-श्याम हैं,
लगते
ये नयनाभिराम हैं,
नील
गगन की चूनरिया पर,
शैल-शिखर
बन भाये बादल!
उमड़-घुमड़
कर आये बादल!!
खेत
सरोवर सब सूखे थे,
उपवन
पानी बिन रूखे थे,
प्यास
बुझाने को धरती की,
रिम-झिम
बारिश लाये बादल!
उमड़-घुमड़
कर आये बादल!!
बागों
में झूले चहके हैं,
ललनाओँ
के मन महके हैं,
गातीं
मेघ-मल्हार दुल्हनियाँ,
झूल
रही है कंचन-काजल!
उमड़-घुमड़
कर आये बादल!!
दादुर, मोर, पपीहा, कोयल,
सरिता
राग सुनाती कल-कल,
चपला
चम-चम चमक रही है,
आसमान
में छाये बादल!
उमड़-घुमड़ कर आये बादल!!
|
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गुरुवार, 13 जून 2013
"उमड़-घुमड़ कर आये बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बादलों की अगवानी में सुंदर गीत, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मन में नित ही भाये बादल।
जवाब देंहटाएंस्वागत है इन बादलों का
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंआये बादल आये बादल
जवाब देंहटाएंगरज -गरज कुछ गायें बादल
बहुत सुन्दर रचना ......सादर
सुन्दर रचना शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकाँधे धर ले आया पानी बाबा देखो ,
जवाब देंहटाएंवह भरी-भरी -सी नई फ़सलवाली झोली .
मेघा की छाया घिर आई ,
फिर धरती ने पलकें खोलीं !
बढिया रचना, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं