हल्द्वानी में
15 जून, 2013 को
ओ.बी.ओ. द्रारा आयोजित
कविसम्मेलन/ मुशायरा में
इस व्यंग्य को पढने का मन है।
अणु और परमाणु-बम भी, सफल नही हो पायेंगे।।
सागर में डुबो फेंक दो अब, तलवार तोप और भालों को।
सेना में भर्ती कर लो, कुछ खादी वर्दी वालों को।।
शासन से कह दो अब, करना सेना का निर्माण नही।
छाँट-छाँट कर वीर-सजीले, भरती करना ज्वान नही।।
फौजों का निर्माण, शान्त उपवन में आग लगा देगा।
उज्जवल धवल पताका में, यह काला दाग लगा देगा।
नही चाहिए युद्ध-भूमि में, कुछ भी सैन्य सामान हमें।
युद्ध-क्षेत्र में, कर्म-क्षेत्र में, करना है आराम हमें।।
शत्रु नही भयभीत कदापि, तोप, टैंक और गोलों से।
इनको भय लगता है केवल, नेताओं के बोलों से।।
रण-भूमि में कुछ कारीगर, मंच बनाने वाले हों।
लाउड-स्पीकर शत्रु के दिल को दहलाने वाले हों।।
सजे-धजे अब युद्ध-मंच पर, नेता अस्त्र-शस्त्र होंगे।
सिर पर शान्ति-ध्वजा टोपी, खादी के धवल-वस्त्र होंगे।
गोलों की गति से जब नेता, भाषण ज्वाला उगलेंगे।
तरस बुढ़ापे पर खाकर, शत्रु के दिल भी पिघलेंगे।।
मोतिया-बिन्द वाली आँखों से, वैरी नही बच पायेगा।
भारी-भरकम भाषण से ही, जीते-जी मर जायेगा।।
सेना में इन वृद्धजनों को, निज जौहर दिखलाना है।
युवकों के दिन बीत गये, बुड्ढों को पाँव जमाना है।।
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शनिवार, 15 जून 2013
"निज जौहर दिखलाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सर्वथा उपयुक्त है और प्रभावशाली भी..
जवाब देंहटाएंसार्थक और प्रभावशाली रचना की प्रस्तुती, धन्यबाद आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-06-2013) के चर्चा मंच 1277 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंउम्दा शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत सामायिक और सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंlatest post पिता
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
जरुर पढिएगा...सार्थक रचना है
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसागर में डुबो फेंक दो अब, तलवार तोप और भालों को।
सेना में भर्ती कर लो, कुछ खादी वर्दी वालों को।।------
गजब का कटाक्ष,वर्तमान का सार्थक व्यंग
बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है
पापा ---------