घूमने
सब ही यहाँ पर आ रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
ज़िन्दग़ी
कितनी कठिन है,
क्या
पता ये आपको?
हम
पहाड़ों के निवासी,
झेलते
सन्ताप को।
सब्जियों
के नाम पर, हम दाल-आलू खा रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
फट
गया बादल अगर तो,
घर
हमारे दरक जायें?
क्या
पता बरसात में,
ये
रास्ते भी सरक जायें?
हम
पहाड़ी पर्वतों की, वेदना को पा रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
शीत
आया बर्फ का,
देने
हमें उपहार अब।
पथ
हुए सुनसान सारे,
थम
गयी रफ्तार सब।
कपकँपाती
सर्दियों से, हाड़ जमते जा रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
अन्न
है दो माह का,
पर
सालभर बाकी पड़ा।
जीविका
के वास्ते,
संकट
हमारे दर खड़ा।
ज़िगर
के टुकड़े हमारे, दूर हमसे जा रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
हमसे
है आजाद भारत,
हम
सजग सैनिक वतन के।
पल
रहे जो कण्टकों में,
फूल
वो हम हैं चमन के।
रायफल लेकर तिरंगा-गान गाते जा रहे हैं।
दूर
से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
|
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सोमवार, 17 जून 2013
"पर्वत सभी को भा रहे हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही सार्थक और सुन्दर प्रस्तुतिकरण,पर्वतों से हमारा सम्बन्ध बहुत पुराना है। इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंसच में दूर से पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली मुश्किलों को हम कहाँ देख पाते हैं
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
दूर से पर्वत सभी को भा रहे हैं।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सच्चा गीत लिखा है शास्त्री जी।
लेकिन पर्वत हमें विपरीत परिस्थितयों में जीना भी सिखाते हैं।
काफी भावुक गीत बन पड़ा है,
जवाब देंहटाएंबधाई.
अभी जो ताण्डव मचा है, वह दुख दे रहा है।
जवाब देंहटाएंपर्वत पर रहने वालों के कष्टों की ओर ध्यान दिलाती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और मार्मिक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पर्वतान्चलों में रहने वाले लोगों के जीवन की कठिनाइयों का मार्मिक चित्रण किया है शास्त्री जी ! मैदानों में रहने वाले लोग वहाँ के खूबसूरत नजारों से आकर्षित होते हैं और मेहमान की तरह चंद रोज बिता कर लौट जाते हैं लेकिन वहाँ के लोग हर दिन कैसा संघर्षमय जीवन बिताते हैं यह कोई नहीं जानता ! सार्थक प्रस्तुति !
सच्चाई को बयान करती रचना
जवाब देंहटाएंइस कविता के माध्यम से पर्वतों पर जीने को विवश भाई और बहनों की व्यथा, संघर्ष , योगदान और विवशता का इससे सुन्दर चित्रण और कोई नहीं हो सकता है . शास्त्री जी नमन .
जवाब देंहटाएंपर्वतों ने ही धरती को धारण किया है -सब तरह से जीवन सुखमय बनाते हैं तो कभी-कभी आक्रोश भी सहना पड़ेगा !
जवाब देंहटाएं