शिव ने खोला नेत्र तीसरा, प्रलय
हुई केदारनाथ में।
माया अपरम्पार प्रभू की, मानव के
कुछ नहीं हाथ में।।
अचल-सन्तरी पर्वत पर, जब-जब हमने थी
छेड़-छाड़ की,
कुदरत को ये रास न आया, उसने ये रचना
उजाड़ दी,
कंकरीट का सारा जंगल, हुआ समाहित जलप्रपात
में।
माया अपरम्पार प्रभू की, मानव के
कुछ नहीं हाथ में।।
जितना भी कूड़ा-कचरा था, उसका पल
में किया सफाया,
भोले बाबा ने मन्दिर का, हमको आदिस्वरूप
दिखाया,
पापकर्मियों के कारण ही, सज्जन भी बह
गये साथ में।
माया अपरम्पार प्रभू की, मानव के
कुछ नहीं हाथ में।।
धाम साधना का होता है, नहीं मौज-मस्ती
का आलय,
वन्दन-पूजन-आराधन का, आलय होता है देवालय,
लेकिन भूल गया था मानव, लोभ-मोह के
क्षणिक स्वार्थ में।
माया अपरम्पार प्रभू की, मानव के
कुछ नहीं हाथ में।।
हुए हताहत जितने परिजन, उनको
श्रद्धासुमन समर्पित,
गंगा मइया करना तर्पण, स्वजन किये
हैं तुमको अर्पित,
हे कैलाशपति-शिवशम्भू! रखना अपनी कायनात
में।
माया अपरम्पार
प्रभू की, मानव के कुछ नहीं हाथ में।। |
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सोमवार, 24 जून 2013
"प्रलय हुई केदारनाथ में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रार्थना !
latest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
हुए हताहत जिनके परिजन, उनको श्रद्धासुमन समर्पित,
जवाब देंहटाएंगंगा मइया करना तर्पण, स्वजन किये हैं तुमको अर्पित,
हे कैलाशपति-शिवशम्भू! रखना अपनी कायनात में।
माया अपरम्पार प्रभू की, मानव के कुछ नहीं हाथ में।।
बहुत सुन्दर.
पता नहीं, हम संकेत समझ पायेंगे या नहीं।
जवाब देंहटाएंsatya ke darshan ...
जवाब देंहटाएंअनुपम रचना | जिन्द्या रयों ते लम्बी उम्र्यां हों |
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २५ /६ /१३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: एक हमसफर चाहिए.
waah ........aanand aagaya ..........sundar kavita
जवाब देंहटाएंbahut achha varnan...
जवाब देंहटाएंमानव के कुछ नहीं हाथ में... sundar rachanaa
जवाब देंहटाएंप्रभु की लीला प्रभु ही जाने ...उसके आगे किसी का जोर नहीं चलता ..
जवाब देंहटाएंswar men nihit hatasha aur atmsamarpan klaant kar gaya !
जवाब देंहटाएं