किये थे कर्म हमने जो, उन्हीं का भोगते हैं फल
कहीं है मार सूखे की, कहीं चारों तरफ है जल
गये जो चार धामों को, विपत्ति में घिरे वो सब
हताहत हो गये कितने, नजर आता नहीं सम्बल
बहा सैलाब आँसू का, लिखूँ कैसे गज़ल को अब,
न कोई भाव आता है, सुमन भी आज है बेकल
सियासत ने बिगाड़ा सन्तुलन, नदियों-पहाड़ों का
तभी तो देवताओं ने, दिखाया शक्ति का ये बल
रौद्र है “रूप” नदियों का, करें
अब आचमन कैसे
भगीरथ तेरी गंगा का, नहीं है नीर अब निर्मल |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 22 जून 2013
"लिखूँ कैसे गज़ल को अब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
उतराखंड पर आई विपदा को भुलाया नही जा सकता,हम चाहे कुछ भी कर लें प्रकृति के आगे लाचार हैं। बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुतिकरण,ईश्वर की कृपा बनी रहे।
जवाब देंहटाएंSab Insaano kaa hee kiya dhara hai, Achchhi prastuti !
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 22 जून 2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
जवाब देंहटाएं सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने . . .बेहतरीन अभिव्यक्ति . आभार गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंजो बोया बही काटना पडना है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सच मुच भयावह
जवाब देंहटाएंकाश समय रहते संभल जाते
इस आपदा के लिए हम ही जिम्मेवार हैं ... इन्सान की भूख जिम्मेवार है ...
जवाब देंहटाएंकितना पीड़ादायक दिखता है हर दृश्य।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण मार्मिक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है---परन्तु यहाँ भी हम सियासत को क्यों कोस रहे हैं( यहीं तो मात खा रहा है हर इंसान जो गलती है वह तेरी )....गलती व पाप तो सभी इंसान के हैं ....हम आप भी इसमें सम्मिलित हैं...
जवाब देंहटाएंनीर नहीं अब निर्मल...सही कहा आपने
जवाब देंहटाएं