कहर
बरसाने लगी हो, क्या तुम्हारा गान गाऊँ?
डर
गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
चित्र
अभिनव खींचते थे, जब घरा को सींचते थे,
किन्तु
अब तुम लीलते हो इस धरा को,
मर
गई मुनिया, किसे झूला झुलाऊँ?
डर
गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
ईश
की आराधना का, क्या यही फल साधना का,
चार
धामों पर तपस्या कौन करने जायेगा अब,
पर्वतों
पर जो हुआ, वो हादसा कैसे भुलाऊँ?
डर
गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
याचकों
का काल होगा, क्रूर काल-कराल होगा,
देवभू
पर किसलिए बारिश तुम्हारा कोप था,
घाव
उर के चीरकर कैसे दिखाऊँ?
डर
गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
जल
नहीं ये ज़लज़ला था, नीर ने सबको छला था,
ओ
निठुर तूने हमारी बस्तियाँ वीरान कर दीं,
शोक
के परिवेश में, कैसे यहाँ नग़मा सुनाऊँ?
डर
गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
|
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बुधवार, 26 जून 2013
"मेघ को कैसे बुलाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आभार गुरुदेव-
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति-
एक प्रतिक्रिया
बिटिया के घर का पानी, तब नहीं पिया करते थे |
पिया संग गौरी विचरे, आशीष दिया करते थे |
चरोधाम बहाना है, अब होटल में पिकनिक करते -
मेघ बहाना जान गए, उत्पात किया करते हैं ||
सब कुछ जलमय,
जवाब देंहटाएंजगत प्रलयमय।
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अद्भुत | साधुवाद |
जवाब देंहटाएंहर कोई डर गया है इस मेघ के कहर से ...
जवाब देंहटाएंराम राम शास्त्री जी ...
sach me ab to dar lagta hai . बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
उफ़ बेहद मार्मिक मगर सटीक
जवाब देंहटाएंआज के घटना क्रम पर बहुत सटीक लिखा है ...बेहतरीन भाव हैं
जवाब देंहटाएंजल नहीं ये ज़लज़ला था, नीर ने सबको छला था,
जवाब देंहटाएंओ निठुर तूने हमारी बस्तियाँ वीरान कर दीं,
शोक के परिवेश में, कैसे यहाँ नग़मा सुनाऊँ?
डर गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
भाव का विस्फोट अनुराग लिए है यह रचना .भक्ति जब व्यभिचारी हो जाती है व्यवसाय बन जाती है तब ही ऐसा होता है .बिजनिस करते हैं लोग भगवान के साथ।कई तो भगवान को ही नहीं जानते हैं तमाम मूर्तियाँ लिए बैठे रहतें हैं यह भी नहीं जानते इनका हेड कौन है ?शंकर और शिव के फर्क को भी नहीं जानते .नहीं जानते सृष्टि का रचता एक शिव (निराकार ज्योतिर्लिन्गम )है।शंकर तो आकारी देवता है .शिव की रचना है .ब्रह्मा विष्णु महेश त्रै रचना है शिव रचता है .ॐ शान्ति .
याचकों का काल होगा, क्रूर काल-कराल होगा,
जवाब देंहटाएंदेवभू पर किसलिए बारिश तुम्हारा कोप था,
घाव उर के चीरकर कैसे दिखाऊँ?
डर गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
जल नहीं ये ज़लज़ला था, नीर ने सबको छला था,
ओ निठुर तूने हमारी बस्तियाँ वीरान कर दीं,
शोक के परिवेश में, कैसे यहाँ नग़मा सुनाऊँ?
डर गया इस “रूप” से, मैं मेघ को कैसे बुलाऊँ?
बहुत सटीक लिखा है ...बेहतरीन भाव हैं