तब समझो कोई जीवन में आया है।
उनके आभासो की गंध महकती हो,
पीड़ा की ललकार, कहानी कहती हो
जब कुछ कहने-सुनने में लाचारी हो,
जब तन-मन लेता हो अल्हड़ अंगड़ाई,
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंबाल कविताओं के बाद कई दिनों में अपने रंग मे दिखाई दिए हो।
सुन्दर गीत के लिए बधाई।
bahut hi achhee bhavnaon ko vyakt kiya hai aapne...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया काव्य है, हमेशा कुछ रोचक लिखते हैं
जवाब देंहटाएंतकनीक दृष्टा
शास्त्री जी............ सुन्दर रचना है आज बहुत...... ओज है आज.... बल कविता में तो आप लाजवाब हैं ही...........प्रणाम है मेरा
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बड़े भाई
जवाब देंहटाएंबेहतर रचना .बधाई
जब तन-मन लेता हो अल्हड़ अंगड़ाई,
उर की बगिया में छाई हो अमराई।
जब शीतल चन्दा भी नही सुहाता हो,
मन के नभ पर बदली जैसी हो छाई।।
तब समझो कोई जीवन में आया है।
जिसने बीराने में सुमन खिलाया है।।
aapne ye kya likh dala hai
जवाब देंहटाएंtan man ko choo dala hai
har rang ismein bhar dala hai
sach , virane mein suman khila dala hai
सुन्दर्।
जवाब देंहटाएं