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रविवार, 7 जून 2009
‘‘आयी रेल-आयी रेल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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रेल बच्चों से लेकर बड़ों तक सब को आकर्षित करती है.....आज भी..!बहुत अछे चित्र आपने लगाये है...
जवाब देंहटाएंबहुत आकर्षक और सुंदर .
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रों से सजी आपकी रचनाएँ............बच्चों से लेकर बड़ों तक.......... सब को आकर्षित करती हैं............. शास्त्री जी........... प्रणाम है आपको.
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आ जाता है आप्की इन कविताओं को पढकर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर चित्रों के साथ,
जवाब देंहटाएंअच्छा बाल-गीत।
बधाई।
बड़े भाई,
जवाब देंहटाएंआप सचमुच "प्रकृति और बाल रचनाएँ" मनमोहक रचते हैं मेरे नज़र में ब्लॉग जगत में आप एक ऐसे कवि हैं जिन्हें मैं इस नाम से विभूषित करना चाहता हूँ.
"प्रकृति एवं बालकवि"
"डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’जी"
सबके दिलों पर आप छाये हुए हैं और छाये रहें यही मेरी शुभ कामना है. "आयी रेल-आयी रेल" रचना बहुत ही अच्छी एवं प्रिय लगी.बधाई.
बहुत सुन्दर रचना.. मजा आया..
जवाब देंहटाएं"प्रकृति एवं बालकवि"
जवाब देंहटाएं"डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’जी"
प्रेम फर्रूखाबादी जी।
आपका सम्मान शिरोधार्य है,
यह आपके प्रेम का प्रसाद है।
आपको मेरे टूटे-फूटे शब्द पसन्द आते है,
आभारी हूँ।
rail dekh kar to hamara dil bhi sair karne ko karne laga hai bahut badiya kavita hai
जवाब देंहटाएंnice poem! i do miss train -journeys shastri ji.
जवाब देंहटाएंrail hamesha hi bachchon kya badon ke bhi aakrshan ka kendra rahi hai.khoobsoorat baal rachna.
जवाब देंहटाएंआपकी सारी बाल-कविताएँ बहुत ख़ूब हैं
जवाब देंहटाएंआकर्षक प्रस्तुति है इस बाल कविता की!
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति करण और रचना-दोनों बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएं