तब मच्छर हैं बहुत सताते।
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शनिवार, 13 जून 2009
मच्छर-दानी (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
तब मच्छर हैं बहुत सताते।
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machhardani ke liye achchha add ho sakata hai........sundar rachna
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंइसके बिना मुझे भी नींद नहीं आती। न लगी हो तो लगता है कहीं खुले में सो रहे हैं। वैसे तरह-तरह के धूओं, गैसों तथा रसायनों से हमें भी बचाती है और पैसों को भी।
waah ji waah
जवाब देंहटाएंanand aagaya................
बढिया है.तस्वीरों से रचना में जान आ गई. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंवाह! बच्चों को आपकी ये कविता पढ़ानी चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया आप रोज़ रोज़ बच्चों को नयी नयी चीज़ों से रुबरु करवाते है कविता के रूप मे बच्चों के लिये याद रखना बहुत आसान हो जाता है आभार्
जवाब देंहटाएंजी
हटाएंबहुत बेहतरीन कविता. मच्छर जी का चित्र देखकर तो रौंगटे खडे होगये.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर रचना...तस्वीर तो बस सजीव लग रही है
जवाब देंहटाएंनासवा जी और वन्दना जी।
जवाब देंहटाएंमच्छरदानी की तस्वीर
मेरे खुद के बैड की है।
machchardani ka ati sundar varnan kiya hai ........bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंमच्छर दानी की भी कविता.. बहुत खुब कविता..
जवाब देंहटाएंबधाई
मच्छरदानी की महिमा दर्शनीय है,बधाई हो.
जवाब देंहटाएंमच्छर की मर जाए नानी,
लगा के सोओ मच्छर दानी.
Who is Inventer of it?
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