प्यार पाते ही यह तो मटक जायेगा।।
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मंगलवार, 23 जून 2009
‘‘दिल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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Waah !! bahut sundar !!
जवाब देंहटाएंमस्त रहता भ्रमर पुष्प की गंध में,
जवाब देंहटाएंमन बंधा भावनाओं के सम्बंध में,
प्यार में यह हलाहल गटक जाएगा ।
उत्तम ही नहीं अतिउत्तम, बहुत ही सुन्दर रचना, आभार ।
aaj toh aapne matkaa hi diya...............
जवाब देंहटाएंitnee sundar ,itnee umdaa kavita likhnaa kahan sikhaya jata hai zaraa hamen bhi toh bataaiye........do line hum bhi dhang ki likhlen
adbhut !
anupam !
saras kavita ! waah waah
बहुत सुन्दर भाव्मय कविता है बधाई
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी, आप तो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं .इतनी सुन्दर तुकबन्दी....मज़ा आ गया.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता – बहुत अच्छी
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब और सुंदर. पर जरा अब दिल को संभालकर रखा किजिये.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
waah is umar ye shbada our bhaw ka samaayojan ki padhakar enrgy paida kar di........
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ताऊ ।
जवाब देंहटाएंनेक सलाह के लिए धन्यवाद।
ओम आर्य जी।
कविता का रिश्ता उम्र से भी होता है क्या?
वाह वाह! क्या बात है मयंक जी!!
जवाब देंहटाएंbahut hi pyar bhara , bhavmayi , premgeet likha hai .......dil wakai bada nazuk hota hai.
जवाब देंहटाएंdil se na khelo khel priye
khilona nhi ye chatak jayega
dil ko sambhalo dil hai priye
bin preet ye to bhatak jayega
Juban par aaj Dil ki baat aa gai !
जवाब देंहटाएं