जून महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है।
नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।।
तब मैं मम्मी से कहती हूँ, नानी के घर जाना है।
नानी के प्यारे हाथों से, हलवा मुझको खाना है।।
कथा-कहानी मम्मी तुम तो, मुझको नही सुनाती हो।
नानी जैसे मीठे स्वर में, गीत कभी नही गाती हो।।
मेरी नानी मेरे संग में, दिन भर खेल खेलतीं है।
मेरी नादानी-शैतानी, हँस-हँस रोज झेलतीं हैं।।
मास-दिवस गिनती हैं नानी, आस लगाये रहती हैं।
रानी-बिटिया को ले आओ, वो नाना से कहती हैं।।
रोज-रोज छोटे मामा जी, आम ढेर से लाते हैं।
उन्हें काटकर प्यारे नाना, हमको खूब खिलाते हैं।।
मस्ती-करना, खेल-खेलना, करना सारा दिन आराम।
अपने घर में बहुत काम है, नानी का घर सुख का धाम।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
बहुत बढिया बाल गीत है।बधाई।
जवाब देंहटाएंनानी का घर, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शास्त्री जी आपका यह ब्लॉग पढ़कर अपने बचपन की याद तजा हो जाती है...बहुत अच्छा है नानी का घर
जवाब देंहटाएंमुझे तो बचपन की ये कविता याद है
जवाब देंहटाएं"झितरिया से झितरिया..
नानी के घार जावा दे
दुध मलाई खावा दे....."
बहुत प्यारी कविता..
छुट्टियों में तो सचमुच सभी बच्चों को केवल नानी का घर ही याद आता है....
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी बहुत ही बढ़िया
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नानी के घर की यादें फिर से ताजा करने के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंआप तो बचपन की यादों मे डुबो ही देते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम
वाह मयंक जी मेरा मन तो पहले ही नानीमय हुआ है अपकी कविता ने तो प्रसन्न कर दिया है उसे नोते भी कर्वा दी याद कर के मुझे सुनायेगा धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंयाद दिलाती बचपन की यह कविता है बेजोड़।
जवाब देंहटाएंगाकर बच्चे इसे पढ़ें तो मच जायेगा शोर।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
nani ke ghar ki khushiyon ka bahut hi satik chitran kiya hai.......badhayi.
जवाब देंहटाएंबीते काल कि यादे ताजा कर गई आप द्वारा रचित कविता पाठ ने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सरजी।
हे प्रभु यह तेरापथ
मुम्बई टाईगर
बहुत बढ़िया साहब !
जवाब देंहटाएंगीत में बच्चों के लिए गति है
जवाब देंहटाएंइस गति में बीती हुई मति है