सिर पर पल्लू लाने की।
अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों के संग,
समय बिताने की।।
मम्मी-पापा तुम्हें देख कर,
मन ही मन हर्षाते हैं।
जब वो नन्ही सी बेटी की,
छवि आखों में पाते है।।
(चित्र गूगल से साभार)
जब आयेगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें।
तन मन धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें।।
दादी-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो।
घर आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो।।
सबकी आँखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो।
प्राची तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी सी मुनिया हो।।
ब्लॉगर्स मित्रों!
गद्य पढ़ने के लिए मेरे निम्न चिट्ठे भी देखें-
http://uchcharandsngal।blogspot.com/
http://powerofhydro।blogspot.com/
मम्मी-पापा तुम्हें देख कर,
जवाब देंहटाएंमन ही मन हर्षाते हैं।
जब वो नन्ही सी बेटी की,
छवि आखों में पाते है
वाह... लजवाब शास्त्री जी.......... मन की बात लिखते हैं आप........... मन भी बच्चा हो जाता है पढ़ कर
बहुत प्यारा..
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम
prachi ke liye ye pyari kavita bahut achhi lagi.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंआपके इस ब्लॉग पर तो पहली बार आया हूँ .सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं.ब्लॉग का प्रजेंटेशन भी बहुत आकर्षक लगा मेरी शुभकामनायें
HemantKumar
अच्छी कविता, शास्त्री जी. दादा की दुलारी बिटिया को आशीष!
जवाब देंहटाएंवाह...पोती को अभी से घूंघट ओढ़े देख दादाजी भी अभी से व्याकुल होने लगे..
जवाब देंहटाएंगुड़िया रानी को आशीर्वाद...घूंघट में देखने के लिए हम भी ज़रूर आएंगे इंशाअल्लाह....
वाह!!!!!!
जवाब देंहटाएं