बहता जिसमें पावन जल है।।
जन-जन जिससे है सुख पाता।
वो कहलाती गंगा माता।।
पर्वत से निकली लघु धारा।
मैदानों में रूप सवाँरा।।
बम-बम भोले की पुकार है।शिव की नगरी हरिद्वार है।।
जो हर की पौढ़ी पर न्हाते।
उनके पाप सभी धुल जाते।।
कष्टों को हर लेने वाली।
यह सबको सुख देने वाली।।
काशी की महिमा अनूप है।
गंगा का मोहक स्वरूप है।।
घाटों की शोभा है न्यारी।
जय-जय-जय भोले भण्डारी।।
हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग।
नासिक के जागे हैं भाग।।
बारह वर्ष बाद जो आता।
महाकुम्भ है वो कहलाता।।
भक्त बहुत इसमें जाते हैं।
साधू-सन्यासी आते हैं।।
जन-मन को हर्षाने वाला।
श्रद्धा का यह पर्व निराला।।
तीनों सरिताओं का संगम।शुद्ध जहाँ होता है तन-मन।।
जप-तप, दान-पुण्य का घर है।
यह प्रयाग प्राचीन नगर है।।
हरित-क्रांति की तुम हो खान।
गंगा-मइया बहुत महान।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
बहुत सुन्दर कविता. जितनी सुन्दर रचना, उतना ही सुन्दर तस्वीर-विन्यास.बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंमनुमोह्क चित्रों के साथ,
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता।
मुबारकवाद।
बहु्त सुन्दर कविता है बच्छों मे अपने धर्मस्थानों के प्रति उत्सुकता जगाती बधाई
जवाब देंहटाएंMAYANK JI,
जवाब देंहटाएंGANAG MAIYYAA PAR BAHUT JORDAR KAVITA HAI.
CHITRA MAN KO LUBHANE VAALE HAIN.
BADHAI.
शुद्ध जहाँ होता है तन-मन।।
जवाब देंहटाएंजप-तप, दान-पुण्य का घर है।
यह प्रयाग प्राचीन नगर है।।
हरित-क्रांति की तुम हो खान।
गंगा-मइया बहुत महान।।
जितनी सुन्दर रचना, उतना ही सुन्दर तस्वीर.बधाई.
जय हो गंगे मैया. बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
pavitra pawan ganaga ka bahut hi saarthak chitran aur photographi bhi bahut hi acchi.. badhai...!
जवाब देंहटाएंबहुत ही पावन दर्शन एक कविता के रुप मे स्थल के रुप मे .......बहुत बहुत धन्यबाद्
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता गंगा अपनी तरफ आकर्षित करती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, सुन्दर चित्र, सुन्दर गंगा माँ
जवाब देंहटाएंआभार है आपका इतनी सुन्दर रचना की लिए
हर हर गंगे, जय गंगा मैय्या
जवाब देंहटाएंअच्छी तस्वीरों के संग अच्छी कविता, जय गंगे मैय्या
जवाब देंहटाएंganga maiya ki mahima ka bakhan aapne bahut khoob kiya hai sath hi chitra bahut hi sundar lage hain aisa pratit hota hai jaise sakshat darshan ho rahe hon.
जवाब देंहटाएंहरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग.
जवाब देंहटाएंनासिक के जागे हैं भाग..
...
हरिद्वार और प्रयाग तो गंगा के सन्दर्भ में ठीक हैं, लेकिन उज्जैन और नासिक अच्छे से नहीं लग रहे.
वैसे गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाये.
"हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग.
जवाब देंहटाएंनासिक के जागे हैं भाग..
...
हरिद्वार और प्रयाग तो गंगा के सन्दर्भ में ठीक हैं, लेकिन उज्जैन और नासिक अच्छे से नहीं लग रहे."
मुसाफिर जाट जी (नीरज जी)
आपकी टिप्पणी बिल्कुल वाजिब है। परन्तु सबका नजरिया भिन्न होता है। मैने मयंक ब्लॉग पर आज इत पर प्रकाश डाला भी है।
कविता में वहाँ पर कुम्भ की बात चल रही ह। फिर भी यदि आप कहेंगे तो मैं इन शब्दों को हटा दूँगा।