सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं। अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।। न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है, जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है, सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना, भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना, ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है, घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है, दशरथ, जनक से ज्यादा लाचार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं, माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं, कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं। सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।। |
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सोमवार, 8 मार्च 2010
“व्यापार हो गये हैं” (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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sir, vyapaar bhi ab contract par chalne laga hai, log supplier, manpower aur contractor hote ja rahe hain.
जवाब देंहटाएंसब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
सही में देखा जाये तो आज रिश्ता का जैसे कोई माइने नहीं होता है ! हर जगह सब कुछ व्यापार हो गया है! आपने आज के समाज की परिस्थिति को लेकर सही चित्रण किया है!
सुंदर गीत!
जवाब देंहटाएंरिश्तों का बाजार गरम है
जवाब देंहटाएंपर उनका अहसास नरम है..
सही फ़रमाया आपने
सच है कि सम्बन्ध आज व्यापार हो गए है। सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंआपने आज के समाज का यथार्थ उकेर दिया है..घर घर देखने मिल रहा है यह दृष्य.
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना.
आज के यथार्थ को बयां करती रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
inhi panktiyon mein sara saar aa gaya hai............halat ka bahut hi satik varnan.
आज के युग का एक कडबा सच, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंsahi kahaa aapne guru ji.,..
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं.nice
जवाब देंहटाएंदशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
bahut khub....
aap ko main dnayabaad bhi dena chata hun ki aaap regular mere blog par aate hai. lagta hai aap ka anubhao chipa hai ismein...
आपकी ये रचना कहीं मन में बस गयी...बस टीस रह गयी...सत्य को सटीक शब्द दिए हैं...
जवाब देंहटाएंइतना सब पढ़ कर अब क्या कहें? जीवन का कटु और नग्न सत्य
जवाब देंहटाएंजीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।