"दिल किसी काम में नही लगता, याद जब से तुम्हारी आयी है। घाव रिसने लगें हैं सीने के, पीर चेहरे पे उभर आयी है। साँस आती है, धडकनें गुम है, क्यों मेरी जान पे बन आयी है। गीत-संगीत बेसुरा सा है, मन में बंशी की धुन समायी है। मेरी सज-धज हैं, बेनतीजा सब, प्रीत पोशाक नयी लायी है। होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं, राज की बात है, छिपायी है। चाहे कितनी बचाओ नजरों को, इश्क की गन्ध छुप न पायी है।" |
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सोमवार, 1 मार्च 2010
“एक पुराना गीत” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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साँस आती है, धडकनें गुम है,
जवाब देंहटाएंक्यों मेरी जान पे बन आयी है।
बहुत सुन्दर रचना. होली की अनन्त शुभकामनायें.
चाहे कितनी बचाओ नजरों को,
जवाब देंहटाएंइश्क की गन्ध छुप न पायी है।"
सर्वप्रथम तो मेरी मान्यता है कि गीत कोई पुराना नही होता.
बहुत प्यारी रचना
बहुत सुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंBehtreen prastuti....Aabhar!
जवाब देंहटाएंघाव रिसने लगें हैं सीने के,
जवाब देंहटाएंपीर चेहरे पे उभर आयी है।
वाह शास्त्री जी आनंद आ गया....क्या शेर है
बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार-
साथ मे गुझिया रबड़ी मलाई
आपको होली की घणी घणी बधाई।
bahut he badhiyaa geet....
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंदिन बीता और होली बीती,
रंग-अबीर की झोली रीती !
मेरे वंदन पर विराम था,
एक अमंगल ही प्रमाण था !!
दोष-मुक्त हो हँस लेता हूँ,
प्रणाम भेजकर खुश होता हूँ !!
सादर--आ.
गीत कभी पुराने नही होते । बहुत सुन्दर लगा गीत। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंpurane mein bhi wo baat hoti hai jo naye mein nhi.........behad khoobsoorat geet.........dil ko chhoo gaya.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्यारी रचना !
जवाब देंहटाएं