जब भी सुखद-सलोने सपने, नयनों में छा आते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं। सूरज उगने से पहले, हम लोग रोज उठ जाते थे, दिनचर्या पूरी करके हम, खेत जोतने जाते थे, हरे चने और मूँगफली के, होले मन भरमाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। मट्ठा-गुड़ नौ बजते ही, दादी खेतों में लाती थी, लाड़-प्यार के साथ हमें, वह प्रातराश करवाती थी, मक्की की रोटी, सरसों का साग याद आते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। आँगन में था पेड़ नीम का, शीतल छाया देता था, हाँडी में का कढ़ा-दूध,ताकत तन में भर देता था, खो-खो और कबड्डी-कुश्ती अब तक मन भरमाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। तख्ती-बुधका और कलम, बस्ते काँधे पे सजते थे, मन्दिर में ढोलक-बाजा, खड़ताल-मँजीरे बजते थे, हरे सिंघाड़ों का अब तक, हम स्वाद भूल नही पाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। युग बदला, पहनावा बदला, बदल गये सब चाल-चलन, बोली बदली, भाषा बदली, बदल गये अब घर आंगन, दिन चढ़ने पर नींद खुली, जल्दी दफ्तर को जाते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।। |
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शुक्रवार, 26 मार्च 2010
“हमको याद दिलाते हैं” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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मट्ठा-गुड़ नौ बजते ही,
जवाब देंहटाएंदादी खेतों में लाती थी,
लाड़-प्यार के साथ हमें,
वह प्रतराश करवाती थी,
मक्की की रोटी, सरसों
का साग याद आते हैं।
Koi lautaa de mere wo beete hue din ....बहुत सुन्दर शास्त्री जी !
आपकी इस कविता ने बीते वक्त की गांव की झांकी दिखा दी....बहुत मन लुभाने वाली कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और मनमोहक रचना लिखा है आपने! बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंवाह-वा, मयंक जी बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंमेरा मन भी गांव की ओर भागता है. आपकी इस कविता ने और व्याकुलता को बढ़ा दिया.
जवाब देंहटाएंहरे चने और मूँगफली के,
जवाब देंहटाएंहोले मन भरमाते हैं।
Waah! paani aagaya muh me...bahut sundar rachana!!
आप बचपन में ले जाते हैं....
जवाब देंहटाएं.
http://laddoospeaks.blogspot.com
गाँव का पूरा जीवन इस एक कविता में समेट लिया है आभार
जवाब देंहटाएंnice
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