लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! रंगे स्यार को दूध-मलाई, मिलता फैनी-फैना है। शेर गधे बनकर चरते हैं, रूखा-शुष्क चबेना हैं।। लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! झूठ और मक्कारी फलती, दाल नही सच्चों की गलती, सज्जनता आँखों को मलती, दारू पैमानों में ढलती, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! नोटों में भगवान बिक रहे, खुले आम ईमान बिक रहे, छम-छम नाच रही शैतानी, खोटे सिक्के खूब टिक रहे, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! स्वर्ग-लोक में गाँधी रोते, आजादी की अर्थी ढोते, वीर-सुभाष हुए आहत हैं, भगतसिंह भी नयन भिगोते, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! सबके सपने चूर हुए हैं, भाई, भाई से दूर हुए हैं, स्वतन्त्रता अभिशाप बन गई, मापदण्ड मजबूर हुए हैं, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 28 मार्च 2010
“प्रजातन्त्र की जय बोलो!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
nice
जवाब देंहटाएंबहुत निराशाजनक परिदृश्य है.
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र की जय बोलो!
जवाब देंहटाएंप्रजातन्त्र की जय बोलो!!
हम तो आप के कहने से जय भी बोल देते है लेकिन हमे तो आज गुंडा तंत्र ही दिख रहा है चारो ओर
नोटों में भगवान बिक रहे,
जवाब देंहटाएंखुले आम ईमान बिक रहे,
स्वर्ग-लोक में गाँधी रोते,
आजादी की अर्थी ढोते,
वीर-सुभाष हुए आहत हैं,
भगतसिंह भी नयन भिगोते,
कटु सत्य को उजागर करती बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.....बधाई
aaj ke halat ka bahut hi marmik varnan............ek katu satya.
जवाब देंहटाएंरंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
जय हो!
कटु सत्य को उजागर करती बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
सबके सपने चूर हुए हैं,
जवाब देंहटाएंभाई, भाई से दूर हुए हैं,
बहुत सुन्दर और करीबी रचना
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
यही कर रहे हैं हम काफी समय से शास्त्री जी, बहुत सुन्दर !
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
जय हो!
बहुत सुन्दर !