सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही, तख्ती ने दम तोड़ दिया है। सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है, कलम टाट का छोड़ दिया है।। दादी कहती एक कहानी, बीत गई सभ्यता पुरानी, लकड़ी की पाटी होती थी, बची न उसकी कोई निशानी।। फाउण्टेन-पेन गायब हैं, जेल पेन फल-फूल रहे हैं। रीत पुरानी भूल रहे हैं, नवयुग में सब झूल रहे हैं।। समीकरण सब बदल गये हैं, शिक्षा का पिट गया दिवाला। बिगड़ गये परिवेश प्रीत के, बिखर गई है मंजुल माला।। |
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बुधवार, 17 मार्च 2010
“स्लेट और तख़्ती” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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bahut sundar baal geet ..........aaj to slate ka riwaaz bhi khatam hone ke kagaar par hai.
जवाब देंहटाएंतख्ती और स्लेट कि खूब याद दिलाई है...और सच ही सारी परिपाटी बदल गयी है...सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबचपन याद दिला दिया आपने. बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
जवाब देंहटाएंतख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।
BAHUT SUNDAR PANKTIYAA SHASHTREE JI
बहुत बढ़िया कविता...बचपन की याद दिलाती हुई.
जवाब देंहटाएंअरे वाह, बहुत सुन्दर, बहुत खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंतख्ती और स्लेट..ये दोनों शब्द तो हमें बचपन की याद दिला दी! बहुत ख़ूबसूरत रचना!
जवाब देंहटाएंमुझे गर्व है कि मै भी कभी तख्ती व स्लेट पर लिखा करता था।
जवाब देंहटाएंतख्ती और स्लेट कि खूब याद दिलाई है...और सच ही सारी परिपाटी बदल गयी है...सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसमीकरण सब बदल गये हैं,
जवाब देंहटाएंशिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।
बचपन की याद .सुंदर कविता.
sundar baal geet :)
जवाब देंहटाएंअब नयी प्रकार की स्लेट आ गयी है, जिसमें लिखो और खूब लिखो। सब कुछ अपने आप मिट जाता है। अपने लिए तो यह कम्प्यूटर है ना? बढिया बाल कविता।
जवाब देंहटाएंयाद आये पुराने दिन..समय बदल गया है.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंलकड़ी की पाटी होती थी,
जवाब देंहटाएंबची न उसकी कोई निशानी।।
यादों में ही बची है अब तो लकड़ी की पाटी
बहुत सुन्दर
स्लेट और तख़्ती पर लिखने के दिन
जवाब देंहटाएंयाद दिला दिए इस कविता ने!
bahut hee achha baal geet guru ji.
जवाब देंहटाएंwo bhi ek din tha , jab adha samay takti ko kisane main hi lag jata tha.
जवाब देंहटाएंशोभनम् ! बहुत सुनदर .........हर चरण निराला है.......
जवाब देंहटाएं@Dr. Smt. ajit gupta ji!
जवाब देंहटाएंनई तरह की स्लेट तो आ गई है परन्तु
हस्तलेख तोलगातार बिगड़ रहे हैं!
अब तो सुलेख पर आयोजित
पुरस्कारों की गूँज कम ही सुनाई देती हैं!
sanskar ki tarah slate bhi apna roop badal rahi hain.aab likho mat bus paste karo.bahut sunder kavita.
जवाब देंहटाएंmain hindi main kese likkhu.tarkeeb batayo.
मेरी रसोई में तो आज भी स्लेट टंगी हुई है। भूलने की आदत है, इस स्लेट का बहुत सहारा है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती