आज प्रस्तुत कर रहा हूँ अपना एक पुराना देश-भक्ति गीत! जिसको अपना मधुर स्वर दिया है मेरी जीवनसंगिनी "श्रीमती अमर भारती" ने मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन। मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं, मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं, तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन। मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। जन्म पाया यहाँ, अन्न खाया यहाँ, सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ, नेक-नीयत से जल से किया आचमन। मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। तेरी गोदी में पल कर बड़ा मैं हुआ, तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ, मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन। मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। स्वप्न स्वाधीनता का सजाये हुए, लाखों बलिदान माता के जाये हुए, कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन। मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। |
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सोमवार, 22 मार्च 2010
“देश-भक्ति गीत” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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awesome !
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार.
जवाब देंहटाएंरामराम
Bharat Mata ki jai....
जवाब देंहटाएंbahut sundar desh bhakti geet!
बधाई इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए , शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंBahut hi badiya
जवाब देंहटाएंJay Hind
बहुत शानदार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! शानदार !बधाई!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई से निकला देशप्रेम गीत...बहुत बढ़िया ...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा ओर शानदार जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat..........gazab ki prastuti.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर देशभक्ति-गीत. आभार.
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंयह देश-गीत पढ़कर मुदित हुआ ! सच है, इस शरीर का ज़र्रा-ज़र्रा वतन की मिटटी का ऋणी है !
आपकी लेखनी और देश की माटी को मेरा सलाम !
सादर--आ.
इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई शास्त्री जी ...
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