लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! रंगे स्यार को दूध-मलाई, मिलता फैनी-फैना है। शेर गधे बनकर चरते हैं, रूखा-शुष्क चबेना हैं।। लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! झूठ और मक्कारी फलती, दाल नही सच्चों की गलती, सज्जनता आँखों को मलती, दारू पैमानों में ढलती, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! नोटों में भगवान बिक रहे, खुले आम ईमान बिक रहे, छम-छम नाच रही शैतानी, खोटे सिक्के खूब टिक रहे, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! स्वर्ग-लोक में गाँधी रोते, आजादी की अर्थी ढोते, वीर-सुभाष हुए आहत हैं, भगतसिंह भी नयन भिगोते, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! सबके सपने चूर हुए हैं, भाई, भाई से दूर हुए हैं, स्वतन्त्रता अभिशाप बन गई, मापदण्ड मजबूर हुए हैं, लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! |
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रविवार, 28 मार्च 2010
“प्रजातन्त्र की जय बोलो!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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nice
जवाब देंहटाएंबहुत निराशाजनक परिदृश्य है.
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र की जय बोलो!
जवाब देंहटाएंप्रजातन्त्र की जय बोलो!!
हम तो आप के कहने से जय भी बोल देते है लेकिन हमे तो आज गुंडा तंत्र ही दिख रहा है चारो ओर
नोटों में भगवान बिक रहे,
जवाब देंहटाएंखुले आम ईमान बिक रहे,
स्वर्ग-लोक में गाँधी रोते,
आजादी की अर्थी ढोते,
वीर-सुभाष हुए आहत हैं,
भगतसिंह भी नयन भिगोते,
कटु सत्य को उजागर करती बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.....बधाई
aaj ke halat ka bahut hi marmik varnan............ek katu satya.
जवाब देंहटाएंरंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
जय हो!
कटु सत्य को उजागर करती बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.
सबके सपने चूर हुए हैं,
जवाब देंहटाएंभाई, भाई से दूर हुए हैं,
बहुत सुन्दर और करीबी रचना
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
यही कर रहे हैं हम काफी समय से शास्त्री जी, बहुत सुन्दर !
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
जवाब देंहटाएंमिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
जय हो!
बहुत सुन्दर !