जाने कितने चेहरों का दिग्दर्शन मैंने पाया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! तुमको देखा है मैंने केवल मन की आँखों से, इसीलिए अपने मन को अन्यत्र नहीं भटकाया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! चितवन तो बाँकी थी पर लावण्य नही था उनमें, सीधी-सादी अमराई ने ही मुझको ललचाया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! बरसाती नालों में देखी ओछी खनक-चपलता , पर गंगा की गहन धार का रूप मझे ही भाया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! जग के उपवन में चहकी थीं रंग-विरंगी कलियाँ, मगर रात की रानी ने ही मेरा मन महकाया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! जाने कितनी सजी-धजी तितलियाँ घूमती वन में, लेकिन मेरा मन केवल मधु की देवी पर आया! किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!! |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 9 मार्च 2010
"मेरा मन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जाने कितनी सजी-धजी तितलियाँ घूमती वन में,
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरा मन केवल मधु की देवी पर आया!
Ye Devi kon hai...??? bahut khub
kis ki prashansha kar rahe hain aap :) hamara bhi parichay karwayen kripya.. aadarniya se...
जवाब देंहटाएंजाने कितने चेहरों का दिग्दर्शन मैंने पाया!
जवाब देंहटाएंकिन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!!
तुमको देखा है मैंने केवल मन की आँखों से,
इसीलिए अपने मन को अन्यत्र नहीं भटकाया!
--
अपने ब्लॉग रवि मन पर लगी पोस्ट जादू पर आपके कमेंट के रूप में ये पंक्तियाँ पढ़ी थीं!
यहाँ तो पूरा गीत ही तैयार है!
--
वाह, क्या जादू है!
--
यह जादू केवल आप ही कर सकते हैं!
आदरणीय टिप्पणीकारों!
जवाब देंहटाएं"रविमन" पर टिप्पणी करते हुए गीत बन गया है।
चितवन तो बाँकी थी पर लावण्य नही था उनमें,
जवाब देंहटाएंसीधी-सादी अमराई ने ही मुझको ललचाया!
किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!!
बेहतरीन। लाजवाब।
लेकिन मेरा मन केवल मधु की देवी पर आया.nice
जवाब देंहटाएंkis kis pankti ki prashansa karoon........har pankti lajawaab hai........bahut hi sundar ,seedhe dil mein utar gayi kavita.
जवाब देंहटाएंpremi hriday ke udgaron ko bahuthi sundar shabdon mein piroya hai.
बहुत लाजवाब, आपकि तो बात ही निराली है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भावों की कोमलता साफ़ दृष्टिगत हो रही है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता शास्त्री जी , मगर साथ में एक गुस्ताकी भी कर रहा हूँ , जिसके लिए अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ ! और गुस्ताखी यह है कि मस्का लगाना तो कोई आप से सीखे !:) वैसे उच्चारण के मुखपृष्ठ का का नया परिदृश्य पसंद आया !
जवाब देंहटाएंहर एक पंक्तियाँ इतना सुन्दर और लाजवाब है कि आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ की जाये कम है! उम्दा रचना और साथ में तस्वीर बहुत अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएं"चितवन तो बाँकी थी पर लावण्य नही था उनमें,
जवाब देंहटाएंसीधी-सादी अमराई ने ही मुझको ललचाया!"
"अमराई" सर्वश्रेष्ठ है शास्त्री जी कोई शक नहीं - प्रत्येक बंध गजब का बहुत प्यारी रचना - आभार और धन्यवाद्.
बहुत सुन्दर रचना है बधाइ
जवाब देंहटाएं