| KIN A POEM: Carl Sandburg अनुवादक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” |
सागरतल की गहराई में ज्वाला बनकर धधक रही हूँ, हुए हजारों साल, आज भी मैं वैसे ही भभक रही हूँ, मत छूना मुझको ऐ भाई! अपना धर्म नहीं छोड़ूँगी, मेरा नाम आग है भाई! मैं नही शीतलता ओढ़ूँगी, मुझे परिधि में सीमित रखकर, कैद कभी नही कर पाओगे, कितने ही प्रयत्न करो, पर गोदी में नही भर पाओगे, अगर बदलना चाहो तो, तुम खुद को बदलो ऐ भाई! मेरा करो प्रयोग-भोग पर, मैं नही बदलूँगी भाई! |
CARL STANDBURG जन्म : 1878 मृत्यु : 1967 |
जन्म : 1878
अच्छा लगा अनुवाद पढ़कर.
जवाब देंहटाएंmazaa aa gaya guru ji....
जवाब देंहटाएंबढ़िया अनुवाद..
जवाब देंहटाएंगज़ब्………।शानदार्………॥बेहतरीन अनुवाद्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चलिए आपके बहाने से ही सही हमे भी इनको पढने का मौका तो मिला !!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपका !!
सुन्दर रचना का सुन्दर अनुवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया अनुवाद
जवाब देंहटाएंअनुवाद बहुत ही अच्छा लगा. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अनुवाद किया है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंलयात्मक अनुवाद का सुंदरतम् प्रयास!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता और उतना ही अच्छा अनुवाद ...बधाई
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