जो बहती गंगा मे अपने हाथ नही धो पाया, जीवनरूपी भवसागर को, कैसे पार करेगा? जो मानव-चोला पाकर इन्सान नही हो पाया, वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा? -------- जो लेने का अभिलाषी है, देने में पामर है, जननी-जन्मभूमि का. वो कैसे आभार करेगा? वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा? -------- जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है, वो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा? वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा? -------- जो खेतों और खलिहानों में, चिंगारी दिखलाता. प्रेम-प्रीत के घर का वो, कैसे आधार धरेगा? |
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बुधवार, 5 जनवरी 2011
"क्या पार करेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सही कह रहे हैं जो उसकी बनायी रचना को नही चाह सका वो भव से कैसे पार हो सकता है…………बेहद उम्दा और सोचने को विवश करती प्रस्तुति बहुत ही पसन्द आयी।
जवाब देंहटाएंकल के चर्चा मंच पर आपकि पोस्ट है।
जीवन के सतय का बोध कराती...बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना..आपकी लेखनी
जवाब देंहटाएंलाजवाब होती ही है..बधाई !
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है,
जवाब देंहटाएंवो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा?
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति है.
yad dila gayee..
जवाब देंहटाएंjo bhara nahi hai bhavon se bahti jisme rasdhar nahi,
vah hridya nahi hai pathar hai jisme swadesh ka pyar nahi..
bahut prerak.deshbhakti ke liye prerit karti kavita...
jeevan ke bhavsaagar ko kaise paar karega!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी रचना ,आभार
जवाब देंहटाएंआशा
बड़े सरल ढंग से जीवन के गहन प्रश्न प्रश्न उठाती कविता।
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