गोरा-चिट्टा कितना अच्छा। लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।। लोग स्वयं को साफ समझते। लेकिन मुझको गन्दा कहते।। मेरी बात सुनो इन्सानों। मत अपने को पावन मानों।। भरी हुई सबके कोटर में। तीन किलो गन्दगी उदर में।। श्रेष्ठ योनि के हे नादानों। सुनलो धरती के भगवानों।। तुम मुझको चट कर जाते हो। खुद को मानव बतलाते हो।। भेद-भाव मुझको नहीं आता। मेरा दुनिया भर से नाता।। ऊपर वाले की है माया। मुझे मिली है सुन्दर काया।। साफ सफाई करता बेहतर। मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।। |
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बुधवार, 19 जनवरी 2011
"गोरा-चिट्टा कितना अच्छा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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nice
जवाब देंहटाएंआपने तो गज़ब कर दिया……………यही होती है सूक्ष्म दृष्टि……………जो कंकर मे से भी मोती चुन लेती है…………………शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ....लाजवाब .... बॉल कविता बहुत ही कमाल की है ...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर बात
जवाब देंहटाएंसब में राम वसे तो फिर भेद भाव कैसा
आभार
वाकई इस बार तो आपके द्वारा कंकर से मोती ही चुना गया है ।
जवाब देंहटाएंआद.शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है !
बाल कविता में भी आपने इतनी गहराई भर दी है कि पढ़ कर मन सोचने पर विवश हो जाता है !
"श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।
तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।"
वाह! क्या बात है !
हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करने में आपका योगदान सराहनीय है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सूअर पर आज ही सुबह सरस पायस पर एक कविता पढ़ी थी . अब आपकी भी कविता पढ़ी . लगता है , आप और रावेन्द्र रवि की सांठ-गाँठ है . एक ही दिन में ;एक ही स्थान से ;एक ही विषय की पुनरावृत्ति . ...बहुत खूब ... . आप दोनों को बधाई .
जवाब देंहटाएंसुंवर की प्रतिक्रया ;
जवाब देंहटाएंखुद सुवरों जैसी हरकत करते है
उस पर सुंवर मुझे कहते है,
जिस दिन अपनी पे आउंगा,
घुर-घुर्र गुर्राउंगा ,
सूंड से इनकी जड़े खोद डालूँगा,
बिन उर्बरा,ये अकुलाहट इतनी पायेंगे ,
मुझे सुंवर कहना भूल जायेंगे !!
डॉ. नागेश जी,
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी की
यही तो सबसे विशिष्ट ख़ूबी है कि वे किसी
एक विषय पर कोई कविता पढ़ते ही
उस विषय पर अपनी कविता लिख लेते हैं!
--
डॉ. मयंक एक विलक्षण आशुकवि हैं!
इस काम में उन्हें ज़रा-सी भी देर नहीं लगती!
--
"सरस पायस" तो प्रारंभ से ही
उनके लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है
और वे इस तरह से प्रेरणा लेकर
कविताएँ लिखते रहे हैं!
--
आइए,
"सरस पायस" पर प्रकाशित
चंद्रमोहन दिनेश जी की
वह कविता भी पढ़ लेते हैं,
जिससे प्रेरणा लेकर उन्होंने यह कविता लिखी!
--
आओ पास, तुम्हें नहलाऊँ
हर विषय पर महारत हासिल है ..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमयंक जी ने निम्नांकित शीर्षक से इसे
जवाब देंहटाएंअपने ब्लॉग "नन्हे सुमन" पर भी
साथ ही साथ प्रकाशित किया है -
--
सूअर का बच्चा
--
इसी शीर्षक से खटीमा के
मशहूर ब्लॉगर डॉ. सिद्धेश्वर जी भी
अपने ब्लॉग "कर्मनाशा" पर
एक कविता प्रकाशित कर चुके हैं!
--
वीरेन डंगवाल की कविता 'सूअर का बच्चा
कभी सोचा न था कि मेरी प्रिय पुस्तक ऐनिमल फार्म (ले. जॉर्ज ऑर्वेल)के नाय्क पर आपकी कविता पढने को मिलेगी!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता एक असुदर "व्यक्तित्व" पर!
बहुत बढिया रचना ।
जवाब देंहटाएंअरे!
जवाब देंहटाएंआलोकिता पर भी नाइस का असर होने लगा है!
sooar ka khoobiyon ka itna acha varnan pehli baar sun raha hoon....
जवाब देंहटाएंwow....
बहुत सुंदर कविता, हमारे यहां कहते हे कि सुअर सब से साफ़ सफ़ाई वाला जानवर हे,
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में प्रकृति में संतुलन का महत्व समझा दिया।
जवाब देंहटाएंवास्तव में बहुत अच्छा होता है..
जवाब देंहटाएंअच्छी बात लिए अच्छी कविता ......
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म दृष्टि ..गहरा अवलोकन...
जवाब देंहटाएंसाफ सफाई करता बेहतर।
जवाब देंहटाएंमैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।।
आपकी क़लम किसी भी विषय पर लिखने की ताकत रखती है. बधाई.
.
जवाब देंहटाएं"एक मासूम से दिखने वाले सूअर ने
एक कुत्ते के मासूम से नवजात बच्चे को खा लिया."
फिर वही अपनी मासूम सी सूरत लिये मुझे एक अन्य दिन दिखायी दिया.
मैंने (कवि ने) उसकी पिछली हरकत से बेखबर होकर उसकी दरिद्रता पर अश्रुपात किया.
तब उसकी इस करनी के बारे में मुझे उस भुक्तभोगी स्वान-पालक भाई ने बताया.
मैंने कहा - सूअर मांस नहीं खाते.
स्वान-पालक ने कहा - भूख में सब कुछ खा जाते हैं. कुछ लोग नज़र बचाकर पाप करते हैं. सामने शरीफ बने रहते हैं.
.
.
जवाब देंहटाएं[१] क्या सभी मासूम से दिखने वाले जीव 'गंदगी में रहने' और 'गंदगी खाने' के कारण मात्र से ही सहानुभूति के पात्र हो जाते हैं?
यदि ऐसा है तो सभी जीवों की बुरी वृत्तियों को नज़रंदाज़ करना होगा.
— बिल्लियों से छींके की रखवाली करवानी होगी.
— बंदरों से घर की साज-सज्जा करवानी होगी.
— कुत्तों से द्वार पर नये-नये आगंतुकों का स्वागत करवाना होगा.
.
.
जवाब देंहटाएं[२] क्या जानवरों पर लिख देने मात्र से कविता बच्चों की हो जाती है?
.
.
जवाब देंहटाएं[३] यह जरूर है कि कविता अमुक जीव की विशेषता बयान कर रही है लेकिन इसे एक अच्छी संदेशपरक कविता नहीं कहा जा सकता.
क्योंकि सूअर का स्वभाव है गंदगी को खाना. उसे ज्ञान नहीं है गंदगी का.
— जो गंदा जानकार उसे साफ़ करने के लिये प्रयत्नशील होता है वह होता है काबिले-तारीफ़.
— यदि सूअर को स्वच्छ पकवान मिलें तो क्या वह उन्हें नहीं खायेगा? जो उसकी पहुँच में होगा, जो उसे सहजता से मिल सकता है वही तो वह खायेगा.
.
बहुत ही सुन्दर ..।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंनवीन संस्करण :
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन है सूअर का बच्चा।।
लोग स्वयं को साफ समझते।
शाम-सबेरे शौच परसते.
मेरी बात सुनो इन्सानों !
पेट साफ़ करके ही मानो.
भरी गंदगी सब कोटर में।
सभी बराबर एक नज़र में.
श्रेष्ठ योनि के हे नादानों !
करने जाओ खुले मैदानों.
तुम मुझको चट कर जाते हो।
मतलब अपना मल खाते हो.
भेद-भाव मुझको नहीं आता.
तभी तो सब कुछ मैं खा जाता.
ऊपर वाले की है माया।
अनजाने में सबकुछ खाया.
साफ सफाई करता बेटर।
मेरे लिये तो सारे वेटर.
.
.
जवाब देंहटाएंवंदना जी का आभारी हूँ कि इतनी अच्छी कविता पढवायी.
.
प्रतुल वशिष्ठ जी आपका टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ!
जवाब देंहटाएंअसुंदर में भी सुन्दर का दर्शन कराती है आपकी
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना |
चर्चा मंच से आप तक पहुची. बहुत ही अच्छा लगा आकर. और कविता तो सही में सुन्दर और सच का रूप दर्शा रही है.
जवाब देंहटाएंप्रेरणा की प्रेरणा से मिली प्रेरणा!
जवाब देंहटाएं--
प्रतुल वशिष्ठ जी का नवीन संस्करण भी बढ़िया है!
kitni pyari kavita :-)
जवाब देंहटाएंकमाल है...यह आपकी लेखनी की ही खूबी है कि इस विषय पर भी इतनी सुन्दर कविता लिख दी..आभार
जवाब देंहटाएं