जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। ज्यों ही सूरज अपनी कुछ किरणें चमकाता, लेकिन कुहरा इन किरणों को ढकता जाता, बासन्ती मौसम में सर्दी ने ली अँगड़ाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। साँप-नेवले के जैसा ही युद्ध हो रहा, कभी सूर्य और कभी कुहासा क्रुद्ध हो रहा, निर्धन की ठिठुरन से होती हाड़-कँपाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले, ऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले, सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। |
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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
"सूरज और कुहरा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आदरणीय शास्त्रीजी ,
जवाब देंहटाएंसूरज और कुहरे की लड़ाई का बहुत ही सहज और सरल भाषा में छंदबद्ध चित्रण किया है आपने !
आप जैसे सरस्वतीपुत्र को प्रणाम ही कर सकता हूँ |
aadarniya shahstriji namaskar ! kohre aur suraj ke beech ke dwand ko sundarta se chitrit kiya hain... aapki kavitaayen pant kee kavitaaon ke kareeb lagt hain.. sadar
जवाब देंहटाएंbahut khub sir...kitne pyare sabdo se apne kohre ko jeeta diya...
जवाब देंहटाएंसाँप-नेवले के जैसा ही युद्ध हो रहा,
जवाब देंहटाएंकभी सूर्य और कभी कुहासा क्रुद्ध हो रहा,
निर्धन की ठिठुरन से होती हाड़-कँपाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
अच्छी कृति !
वाह ! शास्त्री जी बहुत सुन्दर लिखा है.. और यही सत्य है... आज यहाँ तो फिर बदल छ गए है.. सूरज हरा और हम भी ठण्ड से हार गए हैं... बहुत ठंडा हो गया है पहाड़ों में... आपकी कविता सार्थक..
जवाब देंहटाएंसुबह होते ही प्रारम्भ हो जाती है लड़ाई और चलती रहती है।
जवाब देंहटाएंसूरज और कुहरे की लड़ाई सुबह होते ही प्रारम्भ हो जाती है
जवाब देंहटाएंजीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।
कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले,
जवाब देंहटाएंऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले,
बहुत सुन्दर..गरीबों के दर्द को बहुत सुंदरता से उकेरा है..आशा है कि शीघ्र ही सूरज की कोहरे पर विजय होगी. मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनायें. आभार
सर्दी के इस मौसम की बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंसूरज की होगी नहीं मात
जवाब देंहटाएंकुहरे को चीरकर
आएगा प्रभात
बहुत सुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंअभी तो ऐसा ही माहौल है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मकर संक्रांति के बाद हालत बदलनी शुरू होगी।
जवाब देंहटाएंमौसम के अंदाज़ को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है
जवाब देंहटाएंमौसम के अनुकूल सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले, ऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले, सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी नमस्कार,
बहुत ही सहजता से आपने बड़ी गंभीर बातें लिखी हैं -
बहुत सार है आपके लेखन में -
बधाई एवं शुभकामनायें
कुछ तो चले गये दुनिया से, कुछ हैं जाने वाले,
जवाब देंहटाएंऊनी वस्त्र कहाँ से लायें, जिनको खाने के लाले,
सुरसा के मुँह सी बढ़ती ही जाती है मँहगाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
बहुत ही सहजता से बेहद गंभीर बात कह दी और यही आपकी खासियत है…………एक बेहद उम्दा रचना।
khooobsurat geet lekin ab to sardi jaane lagi hai!!
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