“लगता है बसन्त आया है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
>> बृहस्पतिवार, २८ जनवरी २०१०
खेतों में बालियाँ झूलतीं, लगता है बसन्त आया है! केसर की क्यारियाँ महकतीं, बेरों की झाड़ियाँ चहकती, लगता है बसन्त आया है! आम-नीम पर बौर छा रहा, प्रीत-रीत का दौर आ रहा, लगता है बसन्त आया है! सूरज फिर से है मुस्काया , कोयलिया ने गान सुनाया, लगता है बसन्त आया है! (यह चित्र सरस पायस से साभार) शिव का होता घर-घर वन्दन, उपवन में छाया स्पन्दन, लगता है बसन्त आया है! (अन्य सभी चित्र गूगल सर्च से साभार) |
बसन्त का परिपूर्ण स्वागत ब्लॉग में।
जवाब देंहटाएंयह पंक्तियाँ हर बसंत में नयी लगेंगी ...बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंsundartam abhivyakti ..
जवाब देंहटाएंवसन्त आगमन पर बहुत ही सुन्दर भाव भरे हैं कविता मे।
जवाब देंहटाएंबसन्त का सुखद आगमन.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुतिकरण...
वसंतागमन पर खूबसूरत कविता.मैं तो पढ़कर ख़ुश हुआ ही,वसंत भी ख़ुश हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंbasant ka swaagat hai..
जवाब देंहटाएंवसंत का बहुत सुन्दर स्वागत..आभार
जवाब देंहटाएंबसंत का आगमन हो ही गया अब तो ... सुंदर रचना है ...
जवाब देंहटाएंबसंत का खूबसूरत स्वागत..
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