हमें अंग्रेजी और दुनिया की अन्य भाषाओं के द्वारा की जा रही ब्लॉगिंग से अपनी तुलना नहीं करनी है बल्कि यह विचार करना है कि हम ब्लॉगिंग के द्वारा हिन्दी भाषा और साहित्य को किस प्रकार समृद्ध कर सकते हैं । यूँ तो इस समय अंग्रेजी के ब्लॉगों की संख्या करोड़ों में है और हिन्दी के ब्लॉग अभी 20 हजार का आँकडा भी पार नहीं कर पाये हैं। इसका कारण है कि आज दुनिया के हर कोने में अंग्रेजी लिखी व पढ़ी जाती है । लेकिन जापान देश ऐसा है जहाँ के लोग बहुतायत में अपनी जापानी भाषा में में ही ब्लॉगिंग करते हैं! वहीं हम भारतीय अपनी मानसिकता नही बदल पाये हैं। आज जो लोग हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहे हैं उनमें से अधिकांश युवा वर्ग के हैं । जिन्हें ब्लॉगिंग की तकनीक का ज्ञान है। पुराने और धुरन्धर माने जाने वाले हिन्दी के मनीषी अभी ब्लॉगिंग में बहुत कम हैं क्योंकि उन्हें इसका तकनीकी ज्ञान नहीं के बराबर है। कुछ लोग तो हिन्दी ब्लॉगिंग केवल इसलिए कर रहे हैं कि उन्हें अपने चहेतों की टिप्पणियाँ- “बहुत बढ़िया”, “बहुत खूब”, “सुन्दर”, “बहुत अच्छी प्रस्तुति” आदि शब्दों से सुख मिलता है! लेकिन कुछ लोग वास्तव में साहित्य स्रजन कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि ऐसे लोगों की पोस्टों पर पाठकों की आवाजाही बहुत कम है क्योंकि उनके पास न ही गुट है तथा न ही उन्हें गुटबन्दी की कला आती है! आज जहाँ वर्तमान पीढ़ी में पढ़ने-लिखने की प्रवृत्ति का निरन्तर ह्रास हो रहा है वहीं हिन्दी ब्लॉगिंग का सकारात्मक पहलू भी सामने आया है। इसके द्वारा साहित्य के प्रति लोगों में रुझान तो अवश्य बढ़ा है। कारण यह है कि मंहगाई के इस दौर में अच्छी-अच्छी पुस्तकें खरीदना हर एक के बस की बात नहीं रह गई है। जबकि इण्टरनेट पर साहित्य मुफ्त में सुलभ हो जाता है। बहुत से लोग तो नेट का प्रयोग केवल ब्लॉगिंग लिखने के लिए ही करते हैं । लेकिन मेरे विचार से इसका उपयोग लिखने के साथ-साथ पढ़ने के लिए भी होना चाहिए! तभी तो हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास ब्लॉगिंग के द्वारा सम्भव होगा! लेकिन इतना तो निश्चित है कि “हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लॉगिंग की भूमिका” को नकारा नहीं जा सकता है। जिस प्रकार कभी हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी को प्रचारित और प्रसारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था लगभग वही कार्य हिन्दी ब्लॉगिग भी कर रही है! अन्तर केवल इतना है कि हिन्दी सिनेमा ने यहाँ आम बोलचाल की हिन्दी को दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाया वहीं हिन्दी ब्लॉगिंग हिन्दी के उन्नत रूप को दुनियाभर में पहुँचाकर हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रही है! इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि जालजगत पर अनुवादक (ट्रांसलेटर) मौजूद है! जिसके कारण हिन्दी में लिखी पोस्टों को विश्व के लोग निरंतर पढ़ रहे हैं। ब्लॉगिंग में लिखने की और उसको प्रकाशित करने की स्वतन्त्रता है इससे आपका लिखा हुआ आपकी लेखन पुस्तिका तक ही सीमित नहीं रह जाता अपितु वह दुनिया के कोने-कोने तक तुरन्त पहुँच भी जाता है। लेकिन इसका नकारात्मक पहलू यह भी है कि बिना कम्प्यूटर और नेट के आपका स्रजन आम व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाता है। फिर भी देश ही नही विदेशों तक आपकी बात तो इससे पहुँच ही जाती है । यह सब ब्लॉगिंग के कारण ही सम्भव हुआ है। आप लिखिए और तुरन्त पोस्टिंग कीजिए। न प्रकाशकों के चक्कर लगाने की जरूरत और न ही मोटी रकम खर्च करके इसको छपवाने का भार। कुछ लोगों की धारणा है कि ब्लॉग पोस्ट की आयु मात्र 24 घण्टा या जब तक दूसरी पोस्ट न लगा दें तब तक ही होती है किन्तु मेरा मानना है कि यह धारणा बिल्कूल निर्मूल है। मैंने ट्रैफिक देख कर यह अनुमान लगाया है कि पुरानी पोस्ट को अभी भी पढ़ा जा रहा हैं। अर्थात आप जो लिख रहे हैं वह अनन्तकाल तक जीवित रहेगा। इसलिए अब ब्लॉगिंग का मर्म लोगों की समझ में आता जा रहा है और प्रतिदिन नये-नये हिन्दी चिट्ठे बनते जा रहे हैं जिससे हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास निरन्तर होता जा रहा है। कुछ हिन्दी चिट्ठे तो वाकई में साहित्यिक ही हैं। इस कड़ी में मैं “कविता कोश” का उल्लेख करना अपना कर्तव्य समझता हूँ। जिसमें हिन्दी के पुराने और नये रचना धर्मियों की रचनाओं का भारी-भरकम संग्रह मौजूद है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लॉगिंग की भूमिका ही नही बल्कि इसका महत्वपूर्ण योगदान भी है। क्योंकि हिन्दी की ब्लॉगिंग सिर्फ भारतवर्ष में ही नही की जा रही है अपितु विदेशों में बसे भारतीय भी हिन्दी ब्लॉगिंग में सतत योगदान कर रहे हैं। आज समीर लाल ‘समीर’, राम त्यागी, दीपक मशाल, स्वप्नमंजूषा शैल अदा, पूजा, डॉ. दिव्या श्रीवास्तव, अल्पना वर्मा, पूर्णिमा वर्मन, ऊर्मि चक्रवर्ती, दिगम्बर नासवा, शिखा वार्ष्णेय, रानी विशाल, भारतीय नागरिक, पराया देश वाले राज भाटिया सरीखे अनेकों ब्लॉगर हिन्दी में ब्लॉगिंग करके “हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में अपना योगदान कर रहे हैं। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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गुरुवार, 6 जनवरी 2011
“ब्लॉगिंग की भूमिका” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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ाच्छा आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंgyanvardhak aalekh .aabhar .
जवाब देंहटाएंkhobsurat jaankaari bhara aalekh
जवाब देंहटाएंहिन्दी भाषा की इस विकास-यात्रा को जारी रखने के लिये हर हिन्दीभाषी को अपनी योग्यता व क्षमतानुसार अधिकतम योगदान देना ही चाहिये ।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख। विधा विशेष में लिखा हुआ आपका सृजन हमेशा पठनीय रहेगा और गूगल सर्च द्वारा पढ़ा जाएगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित आलेख लिखा है जो ब्लोगिंग के प्रति लोगों की सोच को और पुख्ता करेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित आलेख लिखा है जो ब्लोगिंग के प्रति लोगों की सोच को और पुख्ता करेगा।
जवाब देंहटाएंसर, आपने अच्छा गहन लेख लिखा है यह. पढ़ कर आनंद आया. सादर.
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख.स्थितियां सुधर रही हैं.पनपने में वक्त लगेगा.
जवाब देंहटाएंआभार.
अभी तो प्रवाह बना है और आपने संपन्न कर दिया।
जवाब देंहटाएंआपका चिन्तन बड़ा फलदायी होगा। ब्लॉगिंग हिन्दी साहित्य को दिशा देने में सक्षम है।
जवाब देंहटाएंपण्डित जी!बहुत अच्छी या सार्थक पोस्ट भी नहीं कहूँगा...बेहद वैज्ञानिक तरीके और बेबाकी से आपने इसविधा की चर्चा की है और मर्म को छुआ है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित आलेख ,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
यूँ तो इस समय अंग्रेजी के ब्लॉगों की संख्या करोड़ों में है और हिन्दी के ब्लॉग अभी 20 हजार का आँकडा भी पार नहीं कर पाये हैं। इसका कारण है कि आज दुनिया के हर कोने में अंग्रेजी लिखी व पढ़ी जाती है ।
जवाब देंहटाएंआदरणिया शास्त्री जी मै आप की इस बात से सहमत नही हुं, पुरे युरोप मे इग्लेंड को छोड कर बाकी कही भी अग्रेजी नही बोली जाती, जापान, चीन ओर इन्ही जेसे अन्य देशो मे अग्रेजी नही बोली जाती , पुरे अरब देशो मै अग्रेजी नही बोली जाती, ओर हर जगह ब्लागिग मजे से होती हे, हमारे यहां साधन कम हे, सभी लोगो के पास अपना पीसी नही, नेट कनेकशन नही, आधे से ज्यादा अनपढ हे,ऎसे ही ओर भी बहुत से कारण हे,जब सब के पास अपना पीसी हो तो देखे केसे हम दुनिया मे सब से ज्यादा ब्लागिग करते हे. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - बूझो तो जाने - ठंड बढ़ी या ग़रीबी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
संख्या में बढ़ोत्तरी की कल्पना कैसे हो फ़िर भी सोचा तो जा सकता है
जवाब देंहटाएंवैसे टिप्पणीयों के बारे में ज़्यादा उर्ज़ा नष्ट न की जावे
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख. हिन्दी में लिखने वाले सभी महानुभाव एक पुण्य का काम कर रहे हैं. यदि यह जारी न रहा तो संस्कृत की तरह ही हिन्दी भी काल-कवलित हो जायेगी.
जवाब देंहटाएंSir!! aapke ye alekh mujhe "bahut achchha" kahne ko badhya kar raha hai...:)
जवाब देंहटाएंwaise bloggers ke liye gyanvardhak bhi kah dun to atosyokti nahi hogi..:)
hai na
sir kabhi hamara bhi marg darshan karen...!
nice
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख ! हिंदी ब्लॉग -जगत के विभिन्न पहलुओं पर अच्छा प्रकाश डाला है !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
दोस्तों
जवाब देंहटाएंआपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
आपने ब्लोगिंग सम्बन्धी बहुत-सी ज़रूरी जानकारी दी, कृतज्ञ हूँ.
जवाब देंहटाएंsir, bahut badhiya jankari dene ka shukriya.....
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